नई दिल्ली: कांग्रेस ने शनिवार को मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोलते हुए भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) पर गंभीर आरोप लगाए हैं. पार्टी ने द वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि एलआईसी ने अपने 30 करोड़ पॉलिसीधारकों के पैसों का इस्तेमाल अडानी समूह को अनुचित लाभ पहुंचाने के लिए किया.
कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने इसे 'महाघोटाला' बताते हुए कहा कि एलआईसी ने करीब 33,000 करोड़ रुपये अडानी समूह की विभिन्न कंपनियों में निवेश किए हैं. उन्होंने मांग की है कि इस मामले की जांच पहले लोक लेखा समिति (PAC) और उसके बाद संयुक्त संसदीय समिति (JPC) से करवाई जाए.
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, 'हाल में मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आए खुलासों से पता चलता है कि मोदानी जॉइंट वेंचर ने कैसे व्यवस्थित तरीके से एलआईसी और उसके 30 करोड़ पॉलिसीधारकों की मेहनत की कमाई का दुरुपयोग किया.' उन्होंने दावा किया कि आंतरिक दस्तावेज़ों से यह सामने आया है कि मई 2025 में भारतीय अधिकारियों के निर्देश पर एलआईसी फंड से 33,000 करोड़ रुपये अडानी समूह की कंपनियों में निवेश करवाया गया.
कांग्रेस का कहना है कि यह कदम न केवल एलआईसी की वित्तीय पारदर्शिता पर सवाल खड़ा करता है, बल्कि यह पॉलिसीधारकों के विश्वास से भी खिलवाड़ है. पार्टी ने कहा है कि जब तक इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच नहीं होती, तब तक जवाबदेही तय नहीं की जा सकती.
दरअसल, भारतीय जीवन बीमा निगम (एलआईसी) ने शनिवार को द वाशिंगटन पोस्ट में प्रकाशित उस रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया, जिसमें दावा किया गया था कि सरकारी अधिकारियों ने मई 2025 में एलआईसी से अडानी समूह की कंपनियों में करीब 3.9 अरब डॉलर (लगभग ₹33,000 करोड़) का निवेश करवाने की योजना बनाई थी.
अमेरिकी अख़बार की रिपोर्ट में कहा गया था कि वित्त मंत्रालय के अधिकारियों ने एलआईसी को अडानी समूह के कॉर्पोरेट बॉन्ड में लगभग 3.4 अरब डॉलर निवेश करने और लगभग 50.7 करोड़ डॉलर की राशि से समूह की कुछ सहायक कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की सलाह दी थी.
हालांकि, एलआईसी ने एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए इन आरोपों को पूरी तरह झूठा, निराधार और सच्चाई से कोसों दूर बताया. निगम ने कहा कि उसने ऐसा कोई प्रस्ताव या दस्तावेज़ तैयार नहीं किया और उसके सभी निवेश निर्णय बोर्ड द्वारा स्वीकृत नीतियों के अनुसार स्वतंत्र रूप से लिए जाते हैं. LIC के अनुसार, वित्तीय सेवा विभाग (वित्त मंत्रालय में) या किसी अन्य निकाय की हमारे निवेश निर्णयों में कोई भूमिका नहीं होती.
अडानी समूह ने भी द वाशिंगटन पोस्ट के सवालों के जवाब में किसी भी 'सरकारी योजना' या 'तरजीही व्यवहार' के आरोपों को खारिज किया. समूह ने कहा, एलआईसी कई कॉर्पोरेट कंपनियों में निवेश करती है, और अडानी समूह को किसी विशेष रियायत या प्राथमिकता दिए जाने का दावा भ्रामक है. एलआईसी ने हमारे पोर्टफोलियो में अपने निवेश से लाभ ही अर्जित किया है.”
वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट ने दावा किया था कि वित्त मंत्रालय, वित्तीय सेवा विभाग (DFS) और नीति आयोग ने मिलकर एलआईसी को अडानी समूह की कंपनियों में अधिक निवेश करने की सिफारिश की थी, यह कहते हुए कि यह “एलआईसी के अधिदेश के अनुरूप” और “भारत के आर्थिक उद्देश्यों का समर्थन करने वाला कदम” होगा.
रिपोर्ट के मुताबिक, यह निर्णय अडानी समूह की प्रतिभूतियों में उतार-चढ़ाव को लेकर आंतरिक चेतावनियों के बावजूद लिया गया. रिपोर्ट ने यह भी कहा कि समूह की कुछ कंपनियाँ अमेरिका में प्रतिबंधों के उल्लंघन और रिश्वतखोरी से जुड़े मामलों की जांच का सामना कर रही हैं.