नई दिल्ली: देश की प्राचीन अरावली पहाड़ियों से जुड़े खनन विवाद ने एक बार फिर तूल पकड़ लिया है. इस पूरे मामले में अब सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लिया है. सोमवार को चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच इस अहम मुद्दे पर सुनवाई करेगी. कोर्ट के इस कदम से पर्यावरण कार्यकर्ताओं और अरावली को लेकर चिंतित लोगों में नई उम्मीद जगी है.
अरावली पर्वत श्रृंखला देश की सबसे पुरानी भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक मानी जाती है. यह दिल्ली एनसीआर से लेकर हरियाणा राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई है. अरावली का महत्व सिर्फ पहाड़ियों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह रेगिस्तान बनने से रोकने, भूजल रिचार्ज करने और जैव विविधता को बचाने में बड़ी भूमिका निभाती है. लंबे समय से इस क्षेत्र में अवैध और अनियंत्रित खनन को लेकर सवाल उठते रहे हैं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के फैसले को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है. पूर्व वन संरक्षण अधिकारी आर पी बलवान ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. उनका कहना है कि अरावली की परिभाषा में बदलाव से बड़े पैमाने पर खनन का रास्ता खुल सकता है, जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा होगा.
इस पूरे विवाद की जड़ 20 नवंबर को हुई सुप्रीम कोर्ट की एक सुनवाई मानी जा रही है. उस दिन कोर्ट ने केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय के एक पैनल की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था. इन सिफारिशों में कहा गया था कि केवल 100 मीटर या उससे अधिक ऊंचाई वाली भू आकृतियों को ही अरावली का हिस्सा माना जाए. साथ ही उनके ढलानों और आसपास के क्षेत्रों को भी इसमें शामिल किया जाए.
जस्टिस बी आर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस संशोधित परिभाषा को स्वीकार कर लिया और मंत्रालय को अरावली क्षेत्र के लिए सतत खनन की एक प्रबंधन योजना बनाने का निर्देश दिया. इस फैसले के बाद पर्यावरण प्रेमियों और विपक्षी दलों ने कड़ा विरोध जताया. उनका कहना है कि इस नई परिभाषा से अरावली के बड़े हिस्से को संरक्षण से बाहर किया जा सकता है.
विवाद बढ़ने के बीच Ministry of Environment Forest and Climate Change ने बुधवार को बड़ा फैसला लिया. मंत्रालय ने दिल्ली से गुजरात तक पूरी अरावली श्रृंखला में किसी भी नए खनन पट्टे पर पूरी तरह से रोक लगाने का निर्देश जारी किया. मंत्रालय ने साफ किया कि यह प्रतिबंध सभी राज्यों पर समान रूप से लागू होगा.
केंद्र का कहना है कि इस फैसले का उद्देश्य अवैध और अनियमित खनन पर रोक लगाना है ताकि अरावली की प्राकृतिक संरचना को सुरक्षित रखा जा सके. यह कदम अरावली को एक सतत रिज के रूप में बचाने के लिए उठाया गया है.