''देश को बड़ा बनाने के लिए किसी नेता के भरोसे नहीं छोड़ सकते...', RSS प्रमुख मोहन भागवत से आएगा सियासी भूचाल!
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि देश को बड़ा बनाना है या स्वतंत्रता करना है तो नेताओं या संगठनों के भरोसे नहीं रहा जा सकता है. उन्होंने कहा कि नेता और संगठन सहायक भर होते हैं. लेकिन सबको लगना पड़ता है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने स्थापना के 100 वर्ष पूरे होने पर '100 साल की संघ यात्रा: नए क्षितिज' थीम के तहत मंगलवार से नई दिल्ली के विज्ञान भवन में तीन दिवसीय कार्यक्रम शुरू किया. पहले दिन आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के भविष्य को आकार देने और समाज की भूमिका पर अपने विचार शेयर किए. उन्होंने जोर देकर कहा कि देश का परिवर्तन किसी एक नेता या संगठन के भरोसे नहीं, बल्कि पूरे समाज के सामूहिक प्रयासों से संभव है.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा, “हमारे उपाय अधूरे रहेंगे अगर हमारे समाज के जो कुछ दुर्गुण हैं, उन्हें दूर न किया जाए.” उन्होंने साफ किया कि देश को महान बनाने के लिए नेताओं या संगठनों पर निर्भरता पर्याप्त नहीं है. “नेता और संगठन सहायक भर होते हैं. लेकिन सबको लगना पड़ता है. पूरे समाज के प्रयास से ही कोई परिवर्तन आता है.”
समाज के गुण और अवगुण
मोहन भागवत ने समाज के गुणात्मक विकास और राष्ट्र की प्रगति में सभी की भागीदारी को आवश्यक बताया. उन्होंने कहा, “अगर हम अपने देश को बड़ा बनाना चाह रहे हैं तो यह देश को किसी नेता के भरोसे छोड़कर नहीं होगा, सब सहायक होंगे, नेता, नीति, पार्टी, अवतार, विचार, संगठन और सत्ता सबको मिलना होगा.”
स्थायी समाधान की जरूरत- भागवत
मोहन भागवत ने समाज में हो रहे दुर्गुणों को दूर करने और गुणों को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा, “जो मुद्दे लिए हैं, वो पूरे हो जाएंगे, लेकिन वो फिर से खड़े नहीं होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.” इसके लिए उन्होंने भारत पर हुए ऐतिहासिक आक्रमणों का उदाहरण दिया और बताया कि समाज में कुछ कमियों के कारण बार-बार चुनौतियां सामने आती हैं. इन कमियों को दूर करना और समाज की गुणवत्ता को बढ़ाना ही स्थायी समाधान है.
समाज को चाहिए सच्चा नायक
मोहन भागवत ने रवींद्रनाथ टैगोर के 'स्वदेशी समाज' निबंध का जिक्र करते हुए समाज में सच्चे नेतृत्व की जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने कहा, “इसमें लिखा है कि समाज में जागृति राजनीति से नहीं आएगी. हमारे समाज में स्थानीय नेतृत्व खड़ा करना पड़ेगा.” उन्होंने नायक की परिभाषा देते हुए कहा, “जो स्वयं शुद्ध चरित्र हो, जिसका समाज से निरंतर संपर्क है, समाज जिस पर विश्वास करता है और जो अपने देश के लिए जीवन-मरण का वरण करता है, ऐसा नायक चाहिए.”
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