Ganesh Chaturthi 2025: लालबगचा राजा को पहले दिन मिला इतना दान, वीडियो में देखें कैसे 80 लोग कर रहे नॉनस्टॉप गिनती

मुंबई के लालबागचा राजा गणेशोत्सव मंडल में पहले ही दिन भारी दान चढ़ा है. चढ़ावे की गिनती के लिए 80 लोगों की टीम लगाई गई है. पिछले साल पहले दिन 48 लाख रुपये का दान मिला था. इस बार भी आंकड़े चौंकाने वाले हो सकते हैं.

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Kuldeep Sharma

गणेश चतुर्थी का त्योहार मुंबई में सिर्फ भक्ति और आस्था का प्रतीक ही नहीं, बल्कि सामाजिक समर्पण और सामूहिक विश्वास का सबसे बड़ा उदाहरण भी है. हर साल करोड़ों भक्त लालबागचा राजा के दर्शन के लिए उमड़ते हैं और यहां दान-पुण्य की झड़ी लग जाती है. इस साल भी पहले ही दिन से चढ़ावे की गिनती ने सबका ध्यान खींच लिया है.

मुंबई के प्रसिद्ध लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल में पहले दिन के दान की गिनती शुरू हो गई है. मंडल के कोषाध्यक्ष मंगेश दत्ताराम दलवी ने बताया कि पहले दिन तीन दानपात्र रखे गए थे, इनमें से एक को खोला जा चुका है. उन्होंने बताया कि गिनती की प्रक्रिया जारी है और इसके लिए 80 लोगों की एक टीम लगाई गई है. दलवी ने कहा कि पिछले साल पहले दिन करीब 48 लाख रुपये चढ़ावा मिला था और इस बार भी भक्तों की आस्था देखते हुए उम्मीद है कि आंकड़ा और बड़ा होगा.

लालबागजा राजा का पहला दर्शन

लालबागचा राजा का पहला दर्शन 24 अगस्त की शाम को किया गया. इस बार भी मूर्ति अपनी भव्यता और कलात्मकता से भक्तों का मन मोह रही है. लालबागचा राजा सिर्फ एक गणेश प्रतिमा नहीं, बल्कि मुंबई की पहचान और करोड़ों भक्तों की आस्था का प्रतीक है. हर साल लाखों की भीड़ यहां उमड़ती है और भक्त घंटों कतार में खड़े होकर बप्पा के दर्शन करते हैं. इस दौरान श्रद्धालु न केवल मनोकामनाएं मांगते हैं, बल्कि दान और सेवा के जरिए समाज के लिए योगदान भी करते हैं.

क्या है इतिहास और परंपरा?

लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मंडल की शुरुआत साल 1934 में हुई थी. यह मंडल पुतलाबाई चाल में स्थापित किया गया था और तब से लेकर आज तक यह गणेशोत्सव का सबसे बड़ा अट्रैक्शन बना हुआ है. पिछले आठ दशकों से इस गणेश प्रतिमा की देखभाल कांबली परिवार करता आ रहा है. यही वजह है कि लालबागचा राजा आज मुंबई ही नहीं, बल्कि पूरे देश और विदेश में रहने वाले भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है.

पर्यावरण की ओर एक नया कदम

जहां एक ओर भक्ति और आस्था की लहर दिखाई देती है, वहीं दूसरी ओर पर्यावरण को लेकर भी लोगों में जागरूकता बढ़ी है. पिछले एक दशक से मुंबई के एक शिल्पकार गणपति की मूर्तियां इको-पेपर से तैयार कर रहे हैं. इन मूर्तियों की खासियत यह है कि ये हल्की होती हैं, टूटती नहीं, पानी में आसानी से घुल जाती हैं और सबसे बड़ी बात यह कि पूरी तरह से रिसाइकिल हो सकती हैं. यह पहल भक्तों को न केवल धार्मिक आस्था से जोड़ती है, बल्कि पर्यावरण बचाने का संदेश भी देती है.

गणेश चतुर्थी का यह दस दिवसीय उत्सव भाद्रपद माह की चतुर्थी से शुरू होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है. इसे विनायक चतुर्थी या विनायक चविथि भी कहा जाता है. यह उत्सव गणपति को ‘नई शुरुआत के देवता’, ‘विघ्नहर्ता’ और ‘बुद्धि व ज्ञान के देवता’ के रूप में मनाने का पर्व है. मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में यह त्योहार पूरे जोश और उमंग से मनाया जाता है.