Mumbai 26/11 terror attack anniversary special report: मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने समुद्र की निगरानी के लिए 46 स्पीडबोट खरीदी थी. इन 46 स्पीडबोट्स में से सिर्फ 8 ही काम कर रही हैं, जबकि 38 कबाड़ बन गईं हैं. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई शहर के मझगांव लकड़ी बंदर इलाके में एक एंफिबियस नाव पड़ी हुई है. ये नाव जमीन और समुद्र दोनों में नेवीगेट करने में सक्षम थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, मुंबई पुलिस लॉन्च सेक्शन के पेवर ब्लॉक परिसर के ठीक सामने ऐसी दर्जनों स्पीडबोट्स कबाड़ में खड़ी हैं. कहा जा रहा है कि मुंबई हमलों के बाद मुंबई शहर के चारों ओर निगरानी के लिए 46 स्पीडबोट्स खरीदी गई थी. कबाड़ में पड़ी ये स्पीडबोस्ट उसी 46 स्पीडबोट्स में से हैं.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, हमले के 15 सालों में 46 में से 38 बोस्ट बेकार हो गईं हैं. सिर्फ 8 बोट्स ही ऐसी बची हैं, जो काम कर रहीं हैं. इन बोट्स के जरिए कुछ दिनों तक शहर के 114 किलोमीटर लंबी तटरेखा की निगहबानी की गई थी. बता दें कि 26 नवंबर 2008 को आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकी समुद्र के रास्ते ही मुंबई पहुंचे थे. सभी पाकिस्तानी आतंकी ने कराची से अरब सागर पार करके पहले पोरबंदर पहुंचे थे. यहां से मछली पकड़ने वाली ट्रॉलर को लेकर वे बुधवार-पार्क में मुंबई के तट तक पहुंचे थे. बता दें कि मुंबई पहुंचने के बाद आतंकियों ने जमकर तबाही मचाई थी, जिसमें 160 लोग मारे गए थे, जबकि 300 से अधिक घायल हुए थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, हमले से पहले मुंबई पुलिस के पास समुद्र में गश्त करने के लिए सिर्फ चार स्पीडबोट्स थीं। हमले के बाद इसकी गंभीरता समझते हुए महाराष्ट्र सरकार ने स्पीडबोट्स खरीदने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. हमले के करीब तीन साल बाद यानी 2011 में महाराष्ट्र पुलिस ने 46 स्पीडबोट्स खरीदी। इनमें 19 एंफिबियस बोट्स, 4 एक्स्ट्रा एडवांस एफीबियस बोट्स शामिल थीं, जिन्हें ‘सीलेग’ भी कहा जाता है.
बता दें कि एंफीबियस बोट्स ऐसी थीं, जो समुद्री तट के पास जमीन और पानी दोनों पर चलने में सक्षम थीं. अब हमले के करीब 15 साल बाद और बोट्स की खरीद के 12 साल बाद 19 एंफीबियस बोस्ट और 4 सीलेग बेकार पड़ी हैं. जानकारी के मुताबिक, इनकी खरीद न्यूजीलैंड की एक कंपनी से की गई थी.
रिपोर्ट के मुताबिक, न्यूजीलैंड से खरीदी गईं एंफीबियस बोट्स चलाने के लिए ट्रेनिंग की जरूरत थी. खरीद के बाद इनकी मरम्मत और ट्रेनिंग लेने के लिए कर्मचारियों को न्यूजीलैंड भेजा जाना था, लेकिन कभी उन्हें भेजा नहीं गया. ऐसे में ये नावें रखी-रखी कबाड़ में बदल गईं.