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...तो खत्म हो जाएगी दुनिया! पहाड़ों को लेकर स्टडी में हुआ चौंकाने वाला खुलासा

शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालयी बर्फ अनुमान से कहीं अधिक तेज घट रही है. तापमान बढ़ने से बारिश बढ़ने का खतरा है, जिससे अचानक आने वाली बाढ़ों की संभावना बढ़ सकती है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
 mountain warming india daily
Courtesy: @EverestToday

एक नए अध्ययन में पाया गया है कि दुनिया के पर्वतीय क्षेत्र, जिनमें हिमालय भी शामिल हैं, 1950 से ग्लोबल एवरेज की तुलना में करीब 50% तेज गर्म हो रहे हैं. 'नेचर रिव्यूज अर्थ एंड एनवायरमेंट' में छपी इस रिपोर्ट के अनुसार ऊंचाई बढ़ने के साथ तापमान, सूखापन और बर्फ पिघलने की गति तेज होती जा रही है. इससे एक अरब से अधिक लोगों की जल-सुरक्षा, पारिस्थितिकी और बाढ़ जोखिमों पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है.

दुनिया के पर्वतीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते तापमान को लेकर वैज्ञानिकों ने नई चेतावनी जारी की है. एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में कहा गया है कि ऊंचाई वाले इलाकों में गर्माहट ग्लोबल स्तर से लगभग डेढ़ गुना तेजी से बढ़ रही है. हिमालय सहित कई पर्वतमालाओं में बर्फ और ग्लेशियर पहले से कहीं तेज पिघल रहे हैं. यह बदलाव न सिर्फ स्थानीय पारिस्थितिकी बल्कि करोड़ों लोगों की जल-आपूर्ति और प्राकृतिक आपदाओं के जोखिम को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है.

अध्ययन में बताया गया कि 1980–2020 के दौरान पर्वतीय क्षेत्रों में तापमान वृद्धि का रुझान नीचले इलाकों की तुलना में 0.21 डिग्री सेल्सियस प्रति सदी अधिक रहा. इसी अवधि में पर्वतों में 11.5 मिमी प्रति सदी की अतिरिक्त सूखापन और 25.6 मिमी प्रति सदी की तेज बर्फ कमी दर्ज की गई. शोधकर्ताओं का कहना है कि ऊंचाई के साथ जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो जाती है, जिसे ‘elevation-dependent climate change’ कहा जाता है.

आखिर क्यों तेजी से पहाड़ों पर बढ़ रही गर्मी

वैज्ञानिकों के अनुसार इस तेज गर्माहट के पीछे कई कारण हैं- जैसे सतही अल्बीडो में कमी, वायुमंडल में नमी का बदलाव और एरोसोल की अधिकता. एरोसोल भारत और चीन जैसे मैदानी इलाकों से पर्वतों तक पहुंचकर बर्फ पर बैठते हैं और पिघलने की प्रक्रिया को तेज कर देते हैं. शोध में बताया गया कि पर्वतीय क्षेत्रों और आर्कटिक में कई समानताएं हैं, इसलिए दोनों में बर्फ और हिम की कमी तेजी से दर्ज की जा रही है.

अध्ययन कहता है कि हर पर्वत शृंखला समान गति से प्रभावित नहीं होती. वैज्ञानिकों के अनुसार सबसे तेज बदलाव उन ऊंचाइयों पर हो रहा है जहां बर्फ की परत पीछे हट रही है. हिमालय, आल्प्स और तिब्बती पठार में कई स्थानों पर स्नो लाइन ऊपर खिसक रही है, जिससे मध्यम ऊंचाइयों पर तापमान और सूखे की मार अधिक महसूस की जा रही है. शोधकर्ताओं ने कहा कि ऐतिहासिक आंकड़े भी इसी बढ़ती गर्माहट की पुष्टि करते हैं.

तापमान बढ़ने से इंसान और जानवरों के अस्तित्व पर खतरा

दुनिया के एक अरब से ज्यादा लोग पहाड़ी बर्फ और ग्लेशियरों से मिलने वाले जल पर निर्भर हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि हिमालयी बर्फ अनुमान से कहीं अधिक तेज घट रही है. तापमान बढ़ने से बारिश बढ़ने का खतरा है, जिससे अचानक आने वाली बाढ़ों की संभावना बढ़ सकती है. पेड़-पौधे और जानवर भी ऊंचाई की ओर खिसक रहे हैं, लेकिन अंततः कई प्रजातियों के पास आगे जाने की जगह नहीं बचेगी, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर रूप से बदल सकता है.

21वीं सदी में 0.13 डिग्री सेल्सियस प्रति सदी गर्मी बढ़ने की संभावना

अध्ययन में यह भी पाया गया कि 21वीं सदी में पर्वतीय क्षेत्रों में लगभग 0.13 डिग्री सेल्सियस प्रति सदी की और गर्माहट बढ़ने की संभावना है. हालांकि वर्षा में होने वाले बदलाव को लेकर वैज्ञानिक अभी निश्चित नहीं हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि जलवायु परिवर्तन की यह तेज रफ्तार पर्वतीय समुदायों के साथ-साथ वैश्विक जल सुरक्षा और पारिस्थितिकी को भी प्रभावित कर सकती है.