'SSLV बनाने का काम पूरा हुआ...', आज के लॉन्च के बाद क्या हैं ISRO के इस बयान के मायने?

SSLV: इसरो ने अपने SSLV को बनाने का काम पूरा कर लिया है. आज हुई सफल टेस्टिंग के बाज यह SSLV प्राइवेट कंपनियों को दिया जाएगा ताकि वे कमर्शियल इस्तेमाल कर सकें और निचले ऑर्बिट में स्थापित करने के लिए सस्ते में सैटलाइट भेज सकें. तीन स्टेज में किए गए इस टेस्ट के बाद इसरो का कहना है कि इसका इस्तेमाल करके बड़े स्तर पर और बड़ी संख्या में सैटलाइट लॉन्च किए जाएंगे.

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India Daily Live

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) ने आज एक और सफल परीक्षण किया है. इसरो ने अपने स्मॉल सैटलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) का तीसरा टेस्ट  किया. शुक्रवार को हुए इस लॉन्च के जरिए इसरो ने EOS-08 और SR-0 सैटलाइट को 475 किलोमीटर ऊंचाई वाले सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित कर दिया. इसी के साथ इसरो चीफ एस सोमनाथ ने बयान दिया कि इस लॉन्च के बाद SSLV के डेवलपमेंट का काम पूरा हो गया है. यानी अब यह पूरी तरह से तैयार है और आने वाले समय में इसका इस्तेमाल अपने सैटलाइट लॉन्च करने के साथ-साथ कमर्शियल लॉन्च में भी किया जा सकेगा.

इस लॉन्च के बाद अब SSLV को भी इसरो के लॉन्च व्हीकल्स में शामिल किया जाएगा. हालांकि, इस SSLV की टेक्नोलॉजी को प्राइवेट इंडस्ट्री और कमर्शियल फ्लाइट में इस्तेमाल किया जाएगा. इसरो का लक्ष्य है कि इसका इस्तेमाल बड़े स्तर पर सैटलाइट लॉन्च करने में किया जाए.

कमर्शियल इस्तेमाल की तैयारी

इस बारे में इसरो के चीफ एस सोमनाथ ने कहा है, 'SSLV की इस तीसरी उड़ान के साथ ही हम घोषणा करते हैं कि इसके विकास की प्रक्रिया पूरी हो गई है. हम इसकी टेक्नोलॉजी को प्राइवेट इंडस्ट्री को ट्रांसफर करने की प्रक्रिया में हैं ताकि इसका इस्तेमाल कमर्शियल स्तर पर किया जा सके. ऐसे में यह SSLV की बेहद अच्छी शुरुआत है. साथ ही, हम वेलोसिटी ट्रिमिंग मॉड्यूल (VTM) से जुड़ी कुछ एक्टिविटी की जांच कर रहे हैं और यह सब कुछ तय समय में पूरा हो जाएगा.'

बता दें कि VTM लिक्विड प्रोपलेंट बेस्ड स्टेड है. सैटलाइट को ऑर्बिट में स्थापित करने से ठीक पहले वेलोसिटी को ठीक करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. SSLV की पहले स्टेज की टेस्टिंग के दौरान VTM स्टार्ट नहीं हो पाया था था क्योंकि सेंसर में कोई गड़बड़ी आ गई थी. इसका नतीजा यह हुआ था कि सैटलाइट एक ऐसे ऑर्बिट में स्थापित हो गए थे जो कि अस्थिर था. इसरो चीफ सोमनाथ ने कहा, 'इस बार इस रॉकेट ने सैटलाइट को ठीक उसी ऑर्बिट में स्थापित किया है जो पहले से तय था. मुझे अब तक कोई अंतर नहीं दिखा है. हालांकि, ऑर्बिट की अंतिम जानकारी ट्रैकिंग के बाद ही पता चलेगी.'

क्या है EOS-08?

बता दें कि आज भेजा गया सैटलाइट EOS-08 एक प्रायोगिक सैटलाइट है. 175 किलोग्राम के इस सैटलाइट में तीन नई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया है. इसमें इलेक्ट्रो ऑप्टिकल इन्फ्रारेड पेलोड (EOIR), ग्लोबल नैविगेशन सैटलाइट सिस्टम-रिफ्लेक्टोमेट्री पेलोड (GNSS-R) और SiC UV डोजीमीटर शामिल हैं. इसमें से EOIR का इस्तेमाल दिन आर रात में तस्वीरें खींचने में होगा. इन तस्वीरों की मदद से पर्यावरण, आग की घटना, आपदा प्रबंधन, सर्विलांस जैसे कई महत्वपूर्ण काम किए जा सकेंगे.

वहीं, GNSS-R की मदद से हवा का विश्लेषण, मिट्टी में नमी का आकलन और कई अन्य अध्ययन किए जाएंगे. यह एक तरह का जीपीएस सिस्टम है. वहीं, SiC UV डोजीमीटर का इस्तेमाल UV रेडिएशन की स्टडी करने और गगनयान मिशन की तैयारी में किया जाएगा. सैटलाइट डायरेक्टर अविनाश एम ने इसके बारे में बताया, 'UV डोजीमीटर को गगनयान मिशन के दौरान इस्तेमाल किया जाएगा लेकिन हमने इसे अभी उड़ाया है ताकि हम ऑर्बिट से संबंधित अनुभव जुटा सकें.'