डोनाल्ड ट्रंप के कारण बंद हो गया भारत का पहला ट्रांसजेंडर क्लीनिक, HIV समेत सस्ते में होता था सभी बीमारियों का इलाज
भारत में ट्रांसजेंडर आबादी लगभग 20 लाख मानी जाती है. हैदराबाद के मित्र क्लीनिक में हर महीने 150 से 200 मरीजों का इलाज होता था. यहां डॉक्टरों, मनोवैज्ञानिकों और तकनीकी कर्मचारियों की एक छोटी टीम काम करती थी. इन क्लीनिकों का नाम 'मित्र' था, जो ट्रांसजेंडर लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं, HIV उपचार और काउंसलिंग जैसी सुविधाएं प्रदान करते थे.

हैदराबाद, थाणे और पुणे जैसे शहरों में भारत के पहले ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए बने मेडिकल क्लीनिक को बंद करना पड़ा है. इसका कारण अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा विदेशी सहायता में की गई कटौती को बताया जा रहा है. इन क्लीनिकों का नाम 'मित्र' था, जो ट्रांसजेंडर लोगों के लिए स्वास्थ्य सेवाएं, HIV उपचार और काउंसलिंग जैसी सुविधाएं प्रदान करते थे.
मित्र क्लीनिक की शुरुआत और महत्व
साल 2021 में दक्षिण भारत के हैदराबाद शहर में मित्र क्लीनिक की स्थापना हुई थी. इसके बाद पश्चिमी भारत के थाणे और पुणे में भी इसकी शाखाएं खोली गईं. ये क्लीनिक ट्रांसजेंडर समुदाय के लिए एक सुरक्षित और किफायती स्वास्थ्य सेवा केंद्र के रूप में उभरे थे. इन केंद्रों ने हजारों लोगों को सहायता प्रदान की, खासकर उन लोगों को जो HIV से पीड़ित थे या जिन्हें पहली बार स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत थी.
हर महीने 150 से 200 मरीजों का इलाज होता था
हैदराबाद के मित्र क्लीनिक में हर महीने 150 से 200 मरीजों का इलाज होता था. यहां डॉक्टरों, मनोवैज्ञानिकों और तकनीकी कर्मचारियों की एक छोटी टीम काम करती थी. क्लीनिक की प्रभारी रचना मुद्रबोयिना, जो खुद एक ट्रांस महिला हैं, ने बताया कि हर महीने 2.5 लाख रुपये की फंडिंग से ये सेवाएं चलाई जाती थीं. उनके मुताबिक, यह क्लीनिक न केवल इलाज का केंद्र था, बल्कि समुदाय के लिए एक ऐसा स्थान भी था जहां वे सरकारी योजनाओं और स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में जानकारी हासिल कर सकते थे.
फंडिंग कटौती का कारण
इस साल जनवरी में डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत सभी विदेशी सहायता को 90 दिनों के लिए रोक दिया गया. ट्रंप का कहना है कि वे विदेशी खर्च को अपनी 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के अनुरूप करना चाहते हैं. इसके तहत USAID (यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट), जो 1960 से विदेशों में मानवीय सहायता प्रदान करती रही है, पर सख्ती बरती गई. इस कदम से दुनियाभर में कई विकास कार्यक्रम प्रभावित हुए हैं, खासकर गरीब और विकासशील देशों में.
मित्र क्लीनिक का संचालन अमेरिकी राष्ट्रपति की AIDS राहत एजेंसी (PEPFAR) के तहत शुरू हुआ था, जिसकी शुरुआत 2003 में जॉर्ज बुश के कार्यकाल में हुई थी. जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी ने USAID और भारतीय सरकार के साथ मिलकर इसे स्थापित किया था. लेकिन अब फंडिंग बंद होने से इन क्लीनिकों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है.
ट्रांसजेंडर समुदाय पर प्रभाव
भारत में ट्रांसजेंडर आबादी लगभग 20 लाख मानी जाती है, हालांकि कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह संख्या इससे कहीं अधिक हो सकती है. 2014 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने ट्रांसजेंडर लोगों को अन्य लिंगों के समान अधिकार दिए थे, लेकिन भेदभाव और सामाजिक कलंक के कारण उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच में मुश्किलें आती हैं.
मित्र क्लीनिक इस समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण थे. एक कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि तीनों क्लीनिकों में करीब 6,000 लोग इलाज के लिए आते थे, जिनमें 6-8% HIV से पीड़ित थे. इनमें से ज्यादातर मरीज 30 साल से कम उम्र के थे और 75-80% पहली बार स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले रहे थे.
रचना का कहना है कि सामान्य अस्पतालों में ट्रांसजेंडर लोगों के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता, इसलिए मित्र क्लीनिक उनके लिए खास थे. वहीं, एक ट्रांस महिला व्यजयंती वसंत मोगली ने कहा कि क्लीनिक बंद होने की खबर से वे बहुत दुखी हैं, क्योंकि यहां सस्ती दरों पर इलाज मिलता था.
आलोचना और भविष्य की उम्मीदें
ट्रंप के इस फैसले की कई लोगों ने आलोचना की है. वकील बब्बरजंग वेंकटेश ने कहा कि USAID ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बड़ा योगदान दिया है और इसे बंद करने से विकासशील देशों पर बुरा असर पड़ेगा. पिछले गुरुवार को ट्रंप प्रशासन ने घोषणा की कि USAID के 90% से अधिक विदेशी सहायता अनुबंध खत्म कर दिए जाएंगे, जिससे मित्र क्लीनिक जैसे प्रोजेक्ट्स के बचने की संभावना न के बरावर है.
एलन मस्क, जो ट्रंप के करीबी सहयोगी हैं और संघीय खर्च में कटौती के लिए जिम्मेदार विभाग के प्रमुख हैं, ने भी ट्रांसजेंडर प्रोजेक्ट्स के लिए फंडिंग की आलोचना की है. उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा कि अमेरिकी करदाताओं का पैसा ऐसी चीजों पर खर्च हो रहा था.हालांकि, क्लीनिक के कर्मचारी हार नहीं मान रहे हैं. वे अब अन्य स्रोतों से फंडिंग जुटाने की कोशिश कर रहे हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि राज्य सरकार उनकी मदद करेगी. रचना ने कहा, "हम इसे जारी रखना चाहते हैं और इसके लिए हर संभव प्रयास कर रहे हैं."