मायावती का इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना मजबूरी या जरूरी! क्या अखिलेश के PDA फॉर्मूले को मिलेगी मजबूती?

यूपी में इंडिया गठबंधन की छतरी तले चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी कांग्रेस और AAP को कोशिश BSP को अपने साथ जोड़ने की है. बीते दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बयान से तस्वीर साफ हो गई कि वो मायावती को लेकर लचीला रुख अपना रहे है.

Avinash Kumar Singh

नई दिल्ली: यूपी में इंडिया गठबंधन की छतरी तले चुनाव लड़ने की तैयारी में जुटी कांग्रेस और AAP की कोशिश BSP को अपने साथ जोड़ने की है. बीते दिनों सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बयान से तस्वीर साफ हो गई कि वो मायावती को लेकर लचीला रुख अपना रहे है. यूपी के सियासत में जाटव वोट बैंक हमेशा सभी सियासी दलों के चुनावी रणनीतियों का हिस्सा रहा है. बीते कुछ चुनावों में यह देखने को मिला है कि जाटव वोट बैंक में BJP ने रणनीति के तहत बड़ी सेंधमारी की है. ओबीसी-दलित मतदाताओं पर BJP की मजबूत होती पकड़ सपा और बसपा के भविष्य की सियायत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनती जा रही है. 

मायावती का इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनना मजबूती या जरूरी! 

यूपी की सियासत में बसपा का खिसकता जनाधार मायावती को इंडिया गठबंधन के दरवाजे खटखटाने को मजबूर करती है. मायावती फिलहाल तमाम नेताओं से मिलकर जमीनी हालात का जायजा ले रही है. माना जा रहा है कि इंडिया गठबंधन में जाने से संभावित नफा नुकसान के आकलन के बाद मायावती कोई बड़ा सियासी कदम उठा सकती है. जिसका ऐलान वो वो 15 जनवरी को अपने जन्मदिन के मौके पर कर सकती है. मायावती का इंडिया गठबंधन में आना सियासी तौर पर मायावती और गठबंधन दोनों के लिए समय की जरूरत है. बसपा नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक वर्ग पार्टी के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए इंडिया गठबंधन के बैनर तले आना जरूरी मान रहा है. ऐसे में अब गेंद मायावती के पाले में है कि वह अकेले चुनावी मैदान में लड़ती है या इंडिया गठबंधन के साथ चुनावी ताल मिलाती है. 

क्या मायावती के साथ आने से अखिलेश के PDA फॉर्मूले को मिलेगी मजबूती? 

सियासी गलियारों से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक अखिलेश यादव और कांग्रेस पार्टी BSP को गठबंधन में लाने के लिए पूरी तरह ताकत लगा रहे है. अब अंतिम फैसला मायावती को लेना है कि वो इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनेंगी या नहीं. अखिलेश यादव की पीडीए फॉर्मूला को पिछड़े वर्ग, दलित और अल्पसंख्यक वोटर्स को लामबंदी के तौर पर देखा जा रहा है. आमतौर पर माय समीकरण यानी कि मुस्लिम और यादव के लिए जानी जाने वाली सपा अब गैर यादव ओबीसी और दलितों में पैठ बनाने की भी कोशिश के तहत पीडीए फॉर्मूला को 2024 के लोकसभा चुनाव में आजमाना चाहती है. ऐसे में मायावती के इंडिया गठबंधन में हिस्सा बनने से PDA फॉर्मूले को राज्य में मजबूती मिलेगी. दलितों वोट बैंक का एक वर्ग भले ही बीजेपी के साथ जुड़ा हुआ है लेकिन मायावती हमेशा से खुद को इस वर्ग की स्वभाविक दावेदार के रूप में पेश करती रही है. 

जानें क्या है सीट बंटवारे का संभावित आंकड़ा? 

सूत्रों के मुताबिक अगर BSP इंडिया गठबंधन का हिस्सा बनती है तो उसके लिए भी सीट शेयरिंग का ब्लूप्रिंट तैयार कर लिया गया है. सपा 35 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है और बसपा को 25-30 सीटें देने को राजी किया जा सकता है. वहीं सहयोगी दल कांग्रेस को 10 और रालोद को 5, जेडीयू को एक, चंद्रशेखर आजाद और अपना दल कमेरावादी की पल्लवी पटेल को 1-1 सीटों का प्रस्ताव दिया जा सकता है. जेडीयू के खाते में जौनपुर सीट जा सकती है. जहां से पूर्व सांसद धनंजय सिंह, नगीना से चंद्रशेखर आजाद और कुर्मी बहुल्य किसी सीट से विधायक पल्लवी पटेल को चुनावी मैदान में उतारा जा सकता है. फिलहाल बीते कुछ दिनों से अखिलेश यादव मायावती को लेकर नरम रुख अख्तियार किये हुए है. अब आने वाले दिनों में यह देखना यह दिलचस्प होगा कि क्या यूपी में तीसरा मोर्चा आकार लेता है या दो मोर्चों की लड़ाई के बीच बसपा कोई कमाल करती हुई नजर आती है.