मौसम खराब होने से पहले ही पता चलेगा हाल, जानें कैसे काम करता है डॉप्लर वेदर रडार

देशभर में मौसम के पूर्वानुमान के लिए सरकार एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रही है, जो आने वाले मौसम के बारे में पता लगाने में मदद करता है.

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Shilpa Srivastava

नई दिल्ली: देशभर में मौसम की स्थिति अलग-अलग रहती है. इन पर नजर बनाए रखने के लिए भारत सरकार एक ऐसे सिस्टम पर काम कर रहा है जो मौसम का पूर्वानुमान लगाने में मदद करता है. सरकार ने कहा है कि देशभर में अभी 47 डॉप्लर वेदर रडार (DWR) काम किया जा रहा है. ये रडार मौसम की स्थिति पर नजर रखने और सटीक मौसम पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं. यह जानकारी पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान दी है. 

जितेंद्र सिंह ने बताया कि सरकार ने हाल के सालों में वेदर सर्विलांस सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए कड़ी मेहनत की है. खासकर पहाड़ी और पर्वतीय इलाकों में, जहां मौसम बहुत तेजी से बदल सकता है. वहीं, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में, दस अलग-अलग जगहों पर डॉप्लर वेदर रडार लगाए गए हैं. इनमें श्रीनगर, जम्मू, बनिहाल टॉप, मुक्तेश्वर, सुरकंडा देवी, लैंसडाउन, लेह, कुफरी, जोत और मुरारी देवी शामिल हैं. ये सभी रडार पूरी तरह से एक्टिव हैं और यह 24/7 काम कर रहे हैं. 

किस तरह से मदद करते हैं रडार:

बता दें कि ये रडार वैज्ञानिकों और मौसम अधिकारियों को मौसम की स्थिति पर रियल टाइम में नजर रखने में मदद करता है. साथ ही मौसम का अनुमान लगाने में भी ये रडार काफी मदद करते हैं. इनकी मदद से कम समय में मौसम का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है. इसे नाउकास्टिंग भी कहा जाता है. यह भारी बारिश, बर्फबारी, तूफान या भूस्खलन जैसी खराब मौसम की स्थितियों के दौरान काफी अहम साबित होगा. 

इसके अलावा जितेंद्र सिंह ने यह भी कहा कि डॉप्लर वेदर रडार अभी भारत के कुल जमीनी इलाके का लगभग 87% हिस्सा कवर करते हैं. सरकार और रडार लगाने की योजना बना रही है जिससे देश के बाकी हिस्सों को भी सही से कवर किया जा सके. 

कैसे काम करता है डॉप्लर वेदर रडार:

बता दें कि यह डॉप्लर वेदर रडरा काफी पावरफुल तरीके से काम करता है. यह एक एंटीना से आसमान में रेडियो वेब्स भेजता है. फिर जैसे ही ये वेब्स बारिश की बूंदों, बर्फ के टुकड़ों या ओलों आदि से टकराती हैं, फिर ये रडार पर वापस लौट आती हैं. अगर ये वेब्स किसी बड़ी चीज से टकराती है, तो ये ज्यादा मजबूत सिग्नल भेजती हैं. जितनी देर में सिग्नल वापस आता है, उसे मापकर वैज्ञानिक यह पता लगा सकते हैं कि बारिश या बादल कितने दूर हैं. इसी तरह से पूर्वानुमान लगाया जाता है कि मौसम आने वाले समय में कैसा रहने वाला है. 

डॉप्लर रडार को जो चीज खास बनाती है, वह यह है कि यह यह भी बता सकता है कि मौसम किस दिशा में बढ़ रहा है. यह रेडियो तरंगों में छोटे बदलावों का अध्ययन करके ऐसा करता है, जिन्हें फेज चेंज कहा जाता है. ये बदलाव कंप्यूटर को यह गणना करने में मदद करते हैं कि बारिश के बादल रडार की ओर बढ़ रहे हैं या उससे दूर जा रहे हैं और वे कितनी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.