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India Daily

चार युद्ध, हाइफनेशन और ट्रम्प का दावा, भारत-पाकिस्तान मुद्दों में अमेरिका की भूमिका

भारत का मानना है कि यह हाइफनेशन दोनों देशों को समान स्तर पर रखता है, जबकि भारत एक लोकतांत्रिक और आर्थिक शक्ति है, और पाकिस्तान की तुलना में इसका दर्जा अलग है. भारत तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का भी विरोध करता है, क्योंकि वह अपने और पाकिस्तान के मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करना चाहता है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
Four wars, hyphenation and Trump's claim on US role in India-Pakistan issues

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर दावा किया कि उन्होंने व्यापार वार्ताओं का उपयोग कर भारत और पाकिस्तान को युद्ध रोकने के लिए मजबूर किया. 31 मई को ट्रम्प ने कहा, "हमने व्यापार की बात की और कहा कि हम उन लोगों के साथ व्यापार नहीं कर सकते जो एक-दूसरे पर गोलीबारी कर रहे हैं और संभावित रूप से परमाणु हथियारों का उपयोग कर रहे हैं... उन्होंने समझा और सहमत हुए, और यह सब रुक गया."

हालांकि, नई दिल्ली ने स्पष्ट किया कि ऑपरेशन सिंदूर में हालिया युद्धविराम द्विपक्षीय वार्ताओं का परिणाम था, और इसमें अमेरिका के साथ व्यापार का कोई संबंध नहीं था. ट्रम्प का यह दावा भारत के लिए संवेदनशील है, क्योंकि यह भारत और पाकिस्तान को 'हाइफनेट' करता है, जिसका भारत लंबे समय से विरोध करता रहा है.

हाइफनेशन और तीसरे पक्ष का विरोध

भारत-पाकिस्तान को 'हाइफनेट' करने की शुरुआत 1947 में हुई, जब स्वतंत्रता के दो महीने बाद पाकिस्तान से आए घुसपैठियों ने जम्मू-कश्मीर पर हमला किया. भारत ने संयुक्त राष्ट्र का रुख किया, लेकिन वहां ब्रिटेन ने भारत का साथ नहीं दिया. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी पुस्तक इंडिया आफ्टर गांधी में लिखा, "जनवरी-फरवरी 1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एजेंडा को 'जम्मू-कश्मीर प्रश्न' से बदलकर 'भारत-पाकिस्तान प्रश्न' कर दिया, जिससे भारत को प्रतीकात्मक हार का सामना करना पड़ा."

भारत का मानना है कि यह हाइफनेशन दोनों देशों को समान स्तर पर रखता है, जबकि भारत एक लोकतांत्रिक और आर्थिक शक्ति है, और पाकिस्तान की तुलना में इसका दर्जा अलग है. भारत तीसरे पक्ष की मध्यस्थता का भी विरोध करता है, क्योंकि वह अपने और पाकिस्तान के मुद्दों को द्विपक्षीय रूप से हल करना चाहता है.

चार युद्धों में अमेरिका की भूमिका

1947 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अमेरिका ने द्विपक्षीय समाधान की वकालत की. 1962 के भारत-चीन युद्ध में अमेरिका ने भारत को सैन्य सहायता दी, लेकिन बाद में भारत पर पाकिस्तान से बातचीत का दबाव बनाया. अमेरिकी राजनयिक चेस्टर बाउल्स ने लिखा, "हमने भारत की जरूरत का फायदा उठाकर कश्मीर पर पाकिस्तान को रियायत देने के लिए दबाव बनाया, जो कोई भी लोकतांत्रिक भारतीय सरकार नहीं कर सकती थी."

1971 के युद्ध में अमेरिका ने पाकिस्तान का खुलकर समर्थन किया, जिससे भारत में उसकी छवि खराब हुई. 1999 के कारगिल युद्ध में अमेरिका ने पहली बार भारत का पक्ष लिया. ब्रूस रीडेल ने 2019 में लिखा, "जब अमेरिका ने पाया कि पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा का उल्लंघन किया, राष्ट्रपति क्लिंटन ने पाकिस्तान को युद्ध का जोखिम उठाने के लिए जिम्मेदार ठहराया."