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'बच्चे खेलते वक्त मास्क लगाएं, ये बर्दाश्त नहीं कर सकते', एयर पॉल्यूशन पर सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस विक्रम नाथ का बड़ा बयान

जस्टिस नाथ ने कहा कि पवित्र नदियों को देखकर मुझे उदासी होती है. ये कभी जीवंत और शुद्ध थीं, लेकिन अब हम इन्हें उनकी प्राकृतिक सुंदरता में संरक्षित नहीं कर पाए.

Sagar Bhardwaj

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस विक्रम नाथ ने शनिवार को प्रदूषण से निपटने के लिए उत्सर्जन को नियंत्रित करने और स्वच्छ तकनीकों में निवेश की आवश्यकता पर बल दिया. उन्होंने कहा कि बच्चों का ऐसे माहौल में बड़ा होना अस्वीकार्य है, जहां उन्हें बाहर खेलने के लिए मास्क की जरूरत पड़े. यह बयान उन्होंने विज्ञान भवन में राष्ट्रीय पर्यावरण सम्मेलन 2025 के उद्घाटन सत्र में दिया, जहां राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू मुख्य अतिथि थीं.

प्रदूषण का बढ़ता संकट
जस्टिस नाथ ने कहा, "भारत की राजधानी में प्रदूषण का स्तर नियमित रूप से ऊंचा रहता है. हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि बच्चों का ऐसे माहौल में बड़ा होना ठीक नहीं, जहां उन्हें बाहर खेलने के लिए मास्क चाहिए या कम उम्र में सांस की बीमारियों का डर हो." उन्होंने इसे तत्काल कार्रवाई का आह्वान बताया और कहा, "हमें उत्सर्जन को नियंत्रित करना होगा, स्वच्छ तकनीकों में निवेश करना होगा और टिकाऊ परिवहन विकल्पों पर विचार करना होगा, जो आर्थिक प्रगति को हवा की गुणवत्ता से समझौता किए बिना संभव बनाएं."

जल प्रदूषण पर जताई चिंता
उन्होंने जल प्रदूषण को भी प्रमुख मुद्दा बताया.  जस्टिस नाथ ने कहा, "पवित्र नदियों को देखकर मुझे उदासी होती है. ये कभी जीवंत और शुद्ध थीं, लेकिन अब हम इन्हें उनकी प्राकृतिक सुंदरता में संरक्षित नहीं कर पाए. औद्योगिक कचरे का उपचार, सीवेज ढांचे को बेहतर करना और नदी किनारों की सफाई के लिए समुदायों को प्रोत्साहित करना जरूरी है."

हरित तकनीक और नीतियों की जरूरत
उन्होंने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की सराहना करते हुए कहा कि 2010 से यह संस्था पर्यावरणीय विवादों के समाधान में अहम भूमिका निभा रही है. "सरकार की नीतियां हरित तकनीकों को बढ़ावा दें, उद्योग अपने पर्यावरणीय प्रभाव को समझें और नागरिक समाज जागरूकता बढ़ाए," उन्होंने कहा. "प्रगति प्रदूषण से नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ सामंजस्य से होनी चाहिए."

सम्मेलन में अन्य वक्ताओं के विचार
एनजीटी अध्यक्ष जस्टिस प्रकाश श्रीवास्तव ने कहा, "यह सम्मेलन समावेशी है, जिसमें न्यायविद, विशेषज्ञ और छात्र टिकाऊपन के लिए एकजुट हैं." अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने शहरीकरण से बढ़ते संसाधन दोहन पर चिंता जताई और कहा, "नियामक ढांचे में बड़े बदलाव और पर्यावरणीय कानूनों को नए सिरे से डिजाइन करने की जरूरत है."