नई दिल्ली: बलूचिस्तान की निर्वासित सरकार ने एक बड़े राजनीतिक और प्रतीकात्मक कदम के तहत भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘बलूची दस्तार’ से सम्मानित करने की घोषणा की है.
बलूच नेता मीर यार बलूच ने इसे भारत और बलूचिस्तान के बीच ऐतिहासिक मित्रता, नैतिक समर्थन और स्थायी एकजुटता का प्रतीक बताया. यह सम्मान वर्ष 2026 में दिया जाएगा और इसे बलूच राष्ट्र के संघर्ष से जोड़कर देखा जा रहा है.
बलूचिस्तान की निर्वासित सरकार, जिसके प्रतिनिधि दुनिया के विभिन्न देशों में रह रहे हैं, ने यह ऐलान सोशल मीडिया और प्रेस बयान के जरिए किया. मीर यार बलूच ने कहा कि यह फैसला भारत द्वारा बलूच मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों और मीडिया में नैतिक समर्थन देने के सम्मान में लिया गया है. उनके अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी का नाम बलूच जनता के बीच सम्मान के साथ लिया जाता है.
बलूची दस्तार केवल एक सम्मान नहीं, बल्कि बलूच पहचान, स्वाभिमान और संघर्ष का पवित्र प्रतीक मानी जाती है. यह पारंपरिक बलूच पगड़ी बहुत कम लोगों को दी जाती है, जिन्हें बलूच राष्ट्र अपने दुख-दर्द और न्यायोचित संघर्ष का सच्चा समर्थक मानता है. इसे धारण करने वाले व्यक्ति से मित्रता और समर्थन की जिम्मेदारी निभाने की अपेक्षा की जाती है.
मीर यार बलूच ने भारत और भारतीय जनता के प्रति आभार जताते हुए कहा कि 1.4 अरब भारतीयों का नैतिक और मीडिया समर्थन बलूच आवाज को दुनिया तक पहुंचाने में अहम रहा है. उन्होंने स्पष्ट किया कि भारत ने भले ही आधिकारिक रूप से आंदोलन का समर्थन न किया हो, लेकिन मानवीय और नैतिक सहयोग बलूच जनता के लिए बेहद मायने रखता है.
बलूच नेताओं ने 15 अगस्त 2016 को लाल किले से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा बलूचिस्तान का उल्लेख किए जाने को ऐतिहासिक क्षण बताया. उनके अनुसार, उस भाषण ने बलूच जनता को यह भरोसा दिया कि उनकी पीड़ा अनसुनी नहीं है. ‘बलूची दस्तार’ उसी संवेदनशीलता और साहसिक अभिव्यक्ति की स्वीकृति के रूप में देखी जा रही है.
बलूचिस्तान सरकार को उम्मीद है कि 2026 भारत-बलूचिस्तान संबंधों में नई दिशा लेकर आएगा. साथ ही, ओमान में बसे प्रभावशाली बलूच समुदाय और प्रधानमंत्री मोदी को वहां मिले सर्वोच्च सम्मान का उल्लेख करते हुए कहा गया कि यह मुस्लिम जगत में भारत की बढ़ती स्वीकार्यता और सम्मान का संकेत है.