Ayodhya Ram Mandir Keshav ayangar paraasaran Profile: बस चंद घंटे और फिर अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन हो जाएगा और मंदिर के गर्भगृह में रामलला विराजमान हो जाएंगे. इस कार्यक्रम के समापन के बाद 500 साल बाद वो सपना पुराना हो जाएगा, जिसके लिए लंबी कानूनी लड़ाई चली. हालांकि इस सपने के पूरा होने में वैसे तो कई किरदार हैं और किसी भी किरदार की एक-दूसरे से तुलना नहीं की जा सकती. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे किरदार के बारे में बताएंगे, जिन्हें श्रीराम का आधुनिक हनुमान कहा जाता है.
हम बात कर रहे है 96 साल के परासरन की, जिनका पूरा नाम केशव अयंगर परासरन हैं. इन्हें के. परासरन के नाम से भी जाना जाता है. सबसे पहले इनके बारे में ये जान लीजिए कि इन्हें भगवान श्रीराम का आधुनिक हनुमान क्यों कहा जाता है? दरअसल, अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर बने भव्य मंदिर के पीछे इनका बड़ा योगदान है. दरअसल, 9 नवंबर 2019 को जब रामजन्मभूमि के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया, उस दौरान हिंदू पक्ष के वकीलों का नेतृत्व के. परासरन ही कर रहे थे. उन्होंने इंडियन बार पितामह भी कहा जाता है. ये संज्ञा उन्हें (परासरन) सुप्रीम कोर्ट के जज और मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस संजय किशन कौल ने दी थी. उन्होंने कहा था कि वे ऐसे शख्स थे, जो धर्म से समझौता किए बिना कानून में अपना योगदान देते थे.
कहा जाता है कि के. परासरन को न सिर्फ कानून बल्कि हिंदू शास्त्रों का भी बेहतर ज्ञान था. यही वजह था कि 1970 के बाद से केंद्र में चाहे जिसकी भी सरकार रही हो, उनकी जरूरत हर सरकार को होती थी. अटल जी की सरकार में उन्हें पद्मभूषण (2003) मिला था, तो इसके बाद आई मनमोहन सिंह की सरकार में उन्हें पद्मविभूषण (2011) से सम्मानित किया गया था.
इससे पहले की बात की जाए तो इंदिरा और राजीव गांधी की सरकार के दौरान (1983 से 1989 तक) परासरन अटॉर्नी जनरल थे. इससे पहले 1980 से 1983 तक वे सॉलिसिटर जनरल भी रहे. परासरन जून 2012 से जून 2018 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे.
अयोध्या मामले पर 1950 में पहली बार केस दाखिल हुआ था. 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया. कोर्ट ने फैसले में कहा कि विवादित भूमि का 2.77 एकड़ एरिया तीन हिस्सों में बांट देना चाहिए. पहला हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड, दूसरा निर्मोही आखाड़ा और तीसरा रामलला जन्मभूमि के लिए दिया जाए. कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ सु्प्रीम कोर्ट में 14 याचिकाएं दाखिल हुईं और तब से ये कोर्ट 9 नवंबर 2019 तक सुप्रीम कोर्ट में था.
2010 में जब मामला सुप्रीम कोर्ट में गया, तब से इस पर सुनवाई होती रही, लेकिन तेजी 2019 में आई. इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने 6 अगस्त से 16 अक्टूबर 2019 के बीच 40 सुनवाई की थी. 16 अक्टूबर को फैसला सुरक्षित रख लिया और आखिरकार 9 नवंबर को हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया गया.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने तमाम दलीलें दीं. हिंदू पक्ष की ओर से पेश पूर्व अटॉर्नी जनरल और वरिष्ठ वकील के परासरन ने जब सुनवाई में दलील देने पहुंचे तो उन्होंने जननी जन्मभूमि-श्च स्वर्गादपि गरीयसी (मां और मातृभूमि ऊपर स्वर्ग से भी महान हैं) से अपनी दलील की शुरुआत की. सुनवाई के दौरान उन्होंने रामजन्मभूमि के पक्ष में परासरन ने तो वैसे कई तर्क दिए लेकिन सबसे ज्यादा जिन तर्कों का जिक्र होता है, उनमें ये प्रमुख हैं...
परासरन के पिता केशव अयंगर वकील थे. परासरन ने 1958 में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी कानूनी प्रैक्टिस शुरू की थी. उन्हें इस क्षेत्र में 60 साल से ज्यादा का अनुभव है. 1994 में उन्होंने सरोजा से शादी की थी. दोनों के तीन बेटे हैं. तीनों वकालत से जुड़े हैं. उनके बड़े बेटे मोहन परासरन यूपीए-2 सरकार के कार्यकाल में सॉलिसिटर जनरल थे. उनके दूसरे बेटे बालाजी और तीसरे बेटे सतीश हैं. उनकी दो बेटियां भी हैं.
जाते... जाते एक और अहम बात... के. परासरन वो शख्स हैं, जिन्हें 2019 में केंद्र सरकार ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था. हालांकि बाद में ट्रस्ट का नेतृत्व करने के लिए महंत नृत्य गोपाल दास को नियुक्त किया गया. बता दें कि ये ट्रस्ट अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की देखरेख करता है.