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India Daily

2001 Indian Parliament Attack: 13 दिसंबर 2001, 23 साल बाद भी ताजा है संसद हमले का वो खौफनाक मंजर!

2001 Indian Parliament Attack: 13 दिसंबर 2001, भारतीय लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले की  तारीख है, जिसने भारतीय इतिहास को एक काले दिन के रूप में याद किया जाता है. इस हमले ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक जरुरी मोड़ लिया और इसे एक कठोर संघर्ष के रूप में याद किया जाता है.

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Edited By: Babli Rautela
2001 Indian Parliament Attack
Courtesy: Social Media

2001 Indian Parliament Attack: 13 दिसंबर 2001, भारतीय लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले की  तारीख है, जिसने भारतीय इतिहास को एक काले दिन के रूप में याद किया जाता है. यह हमला देश के सबसे दुस्साहसिक आतंकी हमलों में से एक था, जिसमें नौ सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई थी और कई लोग घायल हुए थे. इस हमले ने आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में एक जरुरी मोड़ लिया और इसे एक कठोर संघर्ष के रूप में याद किया जाता है.

हमले के बारे में

13 दिसंबर, 2001 को सुबह करीब 11:40 बजे, पांच आतंकी संसद परिसर में घुसने में सफल हो गए थे. ये आतंकवादी आधिकारिक कर्मचारियों के वेश में थे और उनके पास नकली स्टिकर और लाल बत्ती लगी हुई एक सफेद एंबेसडर कार थी. उनका इरादा संसद भवन पर धावा बोलकर शीतकालीन सेशन के दौरान बड़े पैमाने पर तबाही मचाने का था, लेकिन सुरक्षाकर्मियों की सतर्कता ने उनकी इस प्लेनिंग को फेल कर दिया.

संसद भवन के गेट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों ने उनकी गाड़ी को रोक लिया. इसके बाद, 30 मिनट तक भारी गोलीबारी हुई. आतंकवादियों के पास एके-47 राइफल, ग्रेनेड, और विस्फोटक थे, जिससे मुठभेड़ और भीषण हो गई. हालांकि, सुरक्षा बलों की वीरता और तुरंत कार्रवाई करने की वजह से, मुख्य इमारत में घुसने से पहले ही सभी पांच आतंकवादियों को मार गिराया गया. इस दौरान दिल्ली पुलिस के अधिकारी, सीआरपीएफ के जवान और एक माली समेत नौ सुरक्षाकर्मियों की शहादत हुई, जिन्होंने अपनी जान की आहुति देकर एक बड़े नरसंहार को रोका.

शहीदों की वीरता

इस हमले में एक कांस्टेबल कमलेश कुमारी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने मुठभेड़ के दौरान अलार्म बजाकर अपनी टीम को सूचित किया, जिससे आतंकवादियों के हमले का प्रभाव कम हुआ. उनकी साहसिकता के लिए उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च शांतिकालीन वीरता पुरस्कार है.

इस हमले के पीछे के अपराधियों का जल्द ही पता चला. लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) और जैश-ए-मोहम्मद (जेईएम), पाकिस्तान के आतंकवादी समूहों के हाथ इस हमले में थे. कुछ ही दिनों में, भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया, जिनमें अफजल गुरु भी शामिल था, जो हमले की साजिश में शामिल था. लंबी कानूनी प्रक्रिया के बाद, अफजल गुरु को दोषी ठहराया गया और 2013 में उसे फांसी दी गई.

भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव

संसद पर हुए इस हमले के बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई थी. भारत ने ऑपरेशन पराक्रम की शुरुआत की, जिसके तहत सीमा पर बड़े पैमाने पर सैन्य लामबंदी की गई. पाकिस्तान में एक्टिव आतंकी समूहों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई. हालांकि, कूटनीतिक प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप के कारण स्थिति को शांत किया गया और युद्ध टल गया.

इस हमले ने भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की कमजोरियों को उजागर किया. संसद भवन जैसे अहम संस्थान की सुरक्षा को लेकर कई सवाल उठे. इसके बाद भारत ने आतंकी हमलों के खिलाफ सुरक्षा उपायों को मजबूत किया, और आतंकवाद निरोधक कानूनों (POTA) में जरुरी बदलाव किए गए. यह हमला भारतीय लोकतंत्र के प्रतीक संसद भवन की सुरक्षा के महत्व को रेखांकित करता है और इसने देश को आतंकवाद के खिलाफ और मजबूत खड़ा किया.