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हनुमान को नहीं दे सकता था कोई ब्राह्मण श्राप, फिर कैसे भूल बैठे थे अपनी शक्तियां

Story of Lord Hanuman: वानर रूप में अवतार लेने वाले बजरंगबली हनुमान जी के बारे में तो आप जानते ही हैं. ग्रंथों के अनुसार, हनुमान जी को बचपन में ही असीम ज्ञान और शक्तियां प्राप्त थीं पर क्या आप जानते हैं वो एक बार अपनी असीम शक्तियों को भूल भी गए थे? तो आइये, जानते हैं ये रोचक कथा -

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India Daily Live

Story of Lord Hanuman: हिंदू धर्मग्रंथों में जब भी हनुमान का जिक्र आता है तो वो संकटमोचक और भक्तवत्सल के रूप में आता है जिनकी मदद के बिना माता सीता का पता और लंका पर चढ़ाई कभी मुमकिन नहीं हो पाती. हालांकि जब भी रामायण में हनुमान के लंका छलांग लगाने की बात आती है तो उन्हें शक्तियों को याद दिलाने का वाक्या भी सामने आता है.

हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार भी कहा जाता है और यही वजह थी कि बचपन से उनके पास असीम शक्तियां थी. उन्हें देवी देवताओं से कई प्रकार के वरदान प्राप्त थे जिसमें से एक वरदान ये भी था कि कोई भी ऋषि, मुनि या ब्राह्मण हनुमान जी को श्राप नहीं सकता था.

यह एक विशेष वरदान था जो उन्हें ब्रह्मा जी की तरफ से मिला था फिर ऐसा क्या हुआ जो उन्हें न सिर्फ श्राप मिला बल्कि उसके प्रभाव के चलते हनुमान जी अपनी अविश्वसनीय शक्तियों को भूल गए. आइये इससे जुड़ी वो दिलचस्प कथा के बारे में जानते हैं.

ऋषि-मुनियों को शरारत से परेशान करते थे बाल हनुमान

हनुमान जी बचपन में अत्यंत चंचल और शक्तिशाली थे.  उनकी असीमित ऊर्जा और वानर रूप के कारण उन्हें अपनी शक्तियों पर पूरा भरोसा था.  यह अक्सर उनके लिए परेशानी का सबब बन जाता था.  वह अक्सर ऋषि-मुनियों के आश्रमों में जा पहुंचते और उनकी तपस्या में विघ्न डाल देते थे.  उनकी शरारतों से तंग आकर ऋषिगण हताश हो गए. 

हालांकि, ऋषि सीधे हनुमान जी को दंडित नहीं कर सकते थे.  ऐसा इसलिए था क्योंकि हनुमान जी को बचपन में ही ब्रह्मा जी का विशेष वरदान प्राप्त था.  इस वरदान के अनुसार कोई भी ब्राह्मण उन्हें दंड नहीं दे सकता था.  ऋषियों ने इस चुनौती का सामना करने के लिए एक चतुराई भरी योजना बनाई. 

सामूहिक श्राप देकर हनुमान को भुलाई शक्तियां

भृगु वंश और अंगिरा वंश के कई ऋषियों ने मिलकर हनुमान जी को श्राप देने का फैसला किया.  उनका मानना था कि हनुमान जी की शक्तियों पर अंकुश लगाना ही उन्हें सही रास्ते पर लाने का उपाय है.  ऋषियों के सामूहिक श्राप के वचन थे, "हे वानर! तुम जिस असीम शक्ति का दुरुपयोग कर हमें परेशान करते हो, हमारे श्राप के कारण तुम उसे भूल जाओगे. "

श्राप के साथ ही मिला उसे ठीक करने का तरीका

हालांकि, ऋषियों का उद्देश्य हनुमान जी को कमजोर करना नहीं था.  उन्हें यह ज्ञान था कि हनुमान जी का जन्म भगवान राम की महान कार्य को पूरा करने में सहायता करने के लिए हुआ था.  इसलिए, यदि उन्हें अपनी अद्भुत शक्तियों का ज्ञान न होता तो वे अपने इस दिव्य उद्देश्य को पूरा नहीं कर पाते.  इसलिए ऋषियों ने श्राप के साथ ही यह भी कहा, "जब समय की मांग होगी, तो कोई तुम्हें तुम्हारी शक्तियों का स्मरण कराएगा और तुम पुनः सब कुछ जान पाओगे. "

इस प्रकार हनुमान जी को भूलने का श्राप मिला.  यही कारण है कि रामायण में जब सुग्रीव हनुमान जी को लंका जाने में असमर्थ बताते हैं, तो जामवंत उन्हें उनकी वीरता और अद्भुत शक्तियों की याद दिलाते हैं.  जामवंत के स्मरण कराने के बाद ही हनुमान जी लंका की यात्रा करने और सीता माता की खोज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में सक्षम होते हैं. 

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