नई दिल्ली: सनातन धर्म में लक्ष्मी जी को धन और वैभव की देवी माना जाता है. उनका वास जहां होता है, वहां समृद्धि और सुख-शांति बनी रहती है. लेकिन उनकी एक बड़ी बहन अलक्ष्मी हैं, जिनकी प्रकृति पूरी तरह विपरीत है.
अलक्ष्मी दरिद्रता, कलह और नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करती हैं. पौराणिक कथाओं में उनका जन्म समुद्र मंथन के दौरान कालकूट विष से हुआ था और लक्ष्मी से पहले प्रकट होने के कारण उन्हें बड़ी बहन कहा गया.
अलक्ष्मी का स्वभाव लक्ष्मी से बिल्कुल विपरीत है. वे अपयश, कलह और दरिद्रता लाती हैं. उनका प्रभाव अशांत और गंदे घरों में अधिक होता है. उनका उद्देश्य जीवन में चेतना और सजगता लाना है ताकि लोग अपने घर और आचार-विचार पर ध्यान दें. अलक्ष्मी की उपस्थिति से यह सीख मिलती है कि केवल धन और वैभव ही जीवन नहीं हैं, बल्कि आचार, संयम और स्वच्छता भी महत्वपूर्ण हैं.
अलक्ष्मी हमेशा गंदे, अव्यवस्थित और झगड़ालू घरों में वास करती हैं. साफ-सुथरे और शांत घरों में उनका प्रवेश नहीं होता. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, वे उन जगहों पर रहती हैं जहां लोग एक-दूसरे से कटुता और नकारात्मकता रखते हैं. इसका मकसद यह है कि लोग अपने घर और व्यवहार को सुधारें और सकारात्मक ऊर्जा का वातावरण बनाएं.
अलक्ष्मी का विवाह उद्दालक मुनि से हुआ था, लेकिन वे उनके साथ नहीं रहीं. उनका जीवन स्वतंत्र और स्वाभाविक रूप से अलग रहा. इसे जीवन में स्वतंत्रता, स्वाभाविक संतुलन और चेतना का प्रतीक माना जाता है, जिससे यह संदेश मिलता है कि नकारात्मकता के बावजूद इंसान अपने मार्ग को सही दिशा में ले जा सकता है.
अलक्ष्मी को तीखी और खट्टी चीजें जैसे नींबू और मिर्च बेहद प्रिय हैं. इनका उपयोग प्रतीक के रूप में घर या दुकान के बाहर किया जाता है, ताकि उनका प्रभाव अंदर न रहे. इसके साथ ही यह प्रथा लोगों को यह याद दिलाती है कि घर में साफ-सफाई, अनुशासन और सकारात्मक आचार-विचार का होना अत्यंत आवश्यक है.
जहां लक्ष्मी धन, वैभव और सुख लेकर आती हैं, वहीं अलक्ष्मी कलह, दरिद्रता और नकारात्मकता लाती हैं. दोनों बहनों का प्रभाव मानव जीवन में संतुलन और विपरीत परिस्थितियों का प्रतीक है. यह दर्शाता है कि जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू होते हैं और उनके बीच संतुलन बनाए रखना आवश्यक है.
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