25 जून 1975 की रात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. इसका आधार सुप्रीम कोर्ट का फैसला था, जिसमें उन्हें चुनावी अनियमितताओं का दोषी ठहराया गया था. इस निर्णय ने राजनीतिक संकट को जन्म दिया.
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मौलिक अधिकारों का निलंबन
आपातकाल लगते ही देश के नागरिकों के सभी मौलिक अधिकार समाप्त कर दिए गए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भी छीन लिया गया.
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चुनावों पर रोक
इस दौरान देश में सभी प्रकार के चुनाव टाल दिए गए. लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर पूर्ण विराम लग गया और सत्ता एक ही दल और नेता के हाथों में केंद्रित हो गई.
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विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारियां
5 जून की रात से ही अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और जयप्रकाश नारायण जैसे तमाम विपक्षी नेताओं को बिना किसी आरोप के गिरफ्तार कर लिया गया.
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जेलों में जगह की कमी
इतनी बड़ी संख्या में गिरफ्तारियां हुईं कि देशभर की जेलें भर गईं. हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं और सामान्य नागरिकों को भी बंदी बनाया गया.
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प्रेस की स्वतंत्रता खत्म
मीडिया पर सख्त सेंसरशिप लगा दी गई. हर अखबार में एक सेंसर अधिकारी नियुक्त किया गया. सरकार के खिलाफ कोई खबर छापना असंभव हो गया. स्वतंत्र पत्रकारिता पूरी तरह खत्म हो गई थी.
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जबरन नसबंदी अभियान
संजय गांधी के नेतृत्व में जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर लाखों पुरुषों की जबरन नसबंदी की गई. खासकर गरीब और कमजोर वर्ग के लोग इस क्रूर नीति का शिकार बने.
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जनता में भय और असंतोष
सरकार और पुलिस के अत्याचारों के चलते आम जनता भयभीत थी. प्रशासनिक मनमानी और अत्याचार की कई कहानियां आपातकाल के बाद सामने आईं.
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लोकतंत्र की नई चेतना
आपातकाल के समाप्त होने के बाद देश में लोकतंत्र के प्रति एक नई जागरूकता आई. लोगों ने अपने अधिकारों को पहचाना और उन्हें लेकर सतर्क हुए.