उत्तराखंड का वो चमत्कारी धाम, जहां रातों-रात पूरी होती हैं मनोकामनाएं


Ritu Sharma
2025/03/28 13:22:15 IST

माता काली के अंतर्ध्यान होने का पवित्र स्थान

    यह मंदिर इसलिए खास है क्योंकि यहां माता काली की कोई मूर्ति नहीं है. भक्त कुंड में स्थित यंत्र की पूजा करते हैं, जिसे वर्षभर केवल शारदीय नवरात्रि की अष्टमी तिथि को खोला जाता है.

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स्कंद पुराण में मिलता है कालीमठ का उल्लेख

    यह मंदिर न सिर्फ स्कंद पुराण में वर्णित है, बल्कि अन्य धार्मिक ग्रंथों में भी इसका जिक्र मिलता है. माना जाता है कि देवताओं की साधना से प्रसन्न होकर माता काली प्रकट हुई थीं और रक्तबीज, शुंभ-निशुंभ का वध किया था.

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रक्तबीज शिला और कालीशिला

    कालीमठ से 8 किलोमीटर दूर स्थित कालीशिला वह स्थान है, जहां माता काली ने रक्तबीज का वध किया था. इस स्थान पर माता के पैरों के निशान भी बताए जाते हैं.

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तंत्र साधकों के लिए विशेष महत्व

    यह मंदिर तंत्र साधना का केंद्र है. मान्यता है कि यहां माता काली को 64 यंत्रों की शक्ति प्राप्त हुई थी और 63 योगनियां इस स्थान पर विचरण करती हैं.

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धारी देवी मंदिर से गहरा संबंध

    मान्यताओं के अनुसार, कालीमठ में देवी के निचले भाग (धड़) की पूजा होती है, जबकि श्रीनगर स्थित धारी देवी मंदिर में देवी के सिर की पूजा की जाती है.

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नवरात्रि में दर्शन से मिलता है आशीर्वाद

    नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में दर्शन करना अत्यंत शुभ माना जाता है. देवी मां भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं.

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कैसे पहुंचे कालीमठ?

    निकटतम हवाई अड्डा – जॉली ग्रांट एयरपोर्ट (200 किमी) रेल मार्ग – ऋषिकेश रेलवे स्टेशन (200 किमी) सड़क मार्ग – ऋषिकेश, रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी होते हुए कालीमठ पहुंचा जा सकता है.

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