हिमालय में फिर तबाही तय? इंसानी हरकतें और क्लाइमेट चेंज होंगे दोषी, वैज्ञानिकों ने दी बड़ी चेतावनी
जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित एक नई रिसर्च में, भूवैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र, विशेष रूप से उत्तराखंड में बढ़ती आपदाओं के लिए जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ अनियंत्रित निर्माण और बस्तियों को भी जिम्मेदार ठहराया है.
नई दिल्ली: जियोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित एक चौंकाने वाली नई रिसर्च में, तीन जाने-माने भूवैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्र, खासकर उत्तराखंड में बढ़ती आपदाओं के बारे में एक गंभीर चेतावनी जारी की है. उनके अध्ययन के अनुसार, इस क्षेत्र में बाढ़ और भूस्खलन की बढ़ती घटनाएं सिर्फ क्लाइमेट चेंज और बदलते मौसम के पैटर्न के कारण नहीं हैं, बल्कि इंसानी दखल, जैसे कि खतरनाक इलाकों में अनियंत्रित निर्माण और बस्तियों के कारण भी हैं.
दून यूनिवर्सिटी के डॉ. यशपाल सुंदरियाल, भरसार यूनिवर्सिटी के डॉ. एसपी सती और जाने-माने भूविज्ञानी डॉ. नवीन जुयाल द्वारा किए गए इस रिसर्च में बताया गया है कि लोग नदियों के किनारे बाढ़ संभावित इलाकों और अस्थिर ढलानों पर तेजी से बस रहे हैं. कमर्शियल गतिविधियां और हाईवे का निर्माण भी प्राकृतिक बाढ़ के मैदानों को नुकसान पहुंचा रहा है, जिससे आपदाओं का खतरा और बढ़ रहा है.
फ्लड प्लेन जोनिंग एक्ट 2012
रिसर्चर्स इस बात पर जोर देते हैं कि भविष्य की आपदाओं को रोकने के लिए 'फ्लड प्लेन जोनिंग एक्ट 2012' को सख्ती से लागू करना बहुत जरूरी है. यह कानून नदी के किनारों से 100 मीटर के दायरे में निर्माण पर रोक लगाता है, फिर भी इसे प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा रहा है. अगर इसका सख्ती से पालन नहीं किया गया, तो उत्तराखंड को 2013 की केदारनाथ आपदा और 2021 की चमोली बाढ़ जैसी और भी त्रासदियों का सामना करना पड़ सकता है.
अध्ययन में दी गई चेतावनी
अध्ययन में आगे चेतावनी दी गई है कि हिमालय 'क्लाइमेट टिपिंग पॉइंट' के करीब पहुंच रहा है. औद्योगिक क्रांति के बाद से वैश्विक तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ, इस क्षेत्र के ग्लेशियर खतरनाक दर से पिघल रहे हैं. अस्थिर ग्लेशियर झीलों की संख्या में वृद्धि और बारिश के पैटर्न में बदलाव से यह क्षेत्र विनाशकारी घटनाओं के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील हो सकता है.
साल 2010 के बाद आपदाएं बढ़ी
विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने कहा है कि अगर वैश्विक तापमान 20 सालों तक 1.5°C ज्यादा रहता है, तो यह हिमालयी क्षेत्र को अपरिवर्तनीय नुकसान की स्थिति में धकेल देगा. यह रिसर्च 2010 के बाद से आपदाओं में खतरनाक वृद्धि की ओर ध्यान दिलाता है, जिसमें गिलगित-बाल्टिस्तान, हुंजा घाटी और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में आई बड़ी बाढ़ शामिल हैं. बिना तुरंत हस्तक्षेप के, स्थिति और खराब हो सकती है, जिससे और भी विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हो सकते हैं.