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पशुपति पारस ने एनडीए से तोड़ा नाता तोड़ा, कहा-दलित पहचान के कारण पार्टी को अन्याय का सामना करना पड़ा

पशुपति पारस ने कहा कि अगर महागठबंधन हमें सही समय पर उचित सम्मान देता है, तो हम भविष्य में राजनीति के बारे में जरूर सोचेंगे.'' पारस ने इस साल आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ कई बैठकें की हैं.

Imran Khan claims
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राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी ने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन से नाता तोड़ लिया है.  पार्टी प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री पशुपति कुमार पारस ने सोमवार को इसकी घोषणा की. घोषणा करते हुए पारस ने कहा कि दलित पार्टी होने के कारण उनकी पार्टी को अन्याय का सामना करना पड़ा और एनडीए की बैठकों में बिहार में भाजपा और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्षों ने उनकी पार्टी का कोई जिक्र नहीं किया. पारस ने कहा, मैं 2014 से एनडीए के साथ हूं आज मैं एनडीए से नाता तोड़ता हूं. 

अपनी पार्टी के राजनीतिक भविष्य के बारे में बात करते हुए पशुपति पारस ने कहा, ''अगर महागठबंधन हमें सही समय पर उचित सम्मान देता है, तो हम भविष्य में राजनीति के बारे में जरूर सोचेंगे.'' पारस ने इस साल आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ कई बैठकें की हैं. पारस ने सोमवार को बीआर अंबेडकर जयंती के अवसर पर आयोजित एक समारोह में एनडीए गठबंधन से अलग होने का ऐलान किया. 

पशुपति पारस ने नीतीश कुमार को घेरा

समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, आरएलजेपी के समारोह में पारस ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर भी आरोप लगाया और कहा कि नीतीश कुमार के 20 साल के शासन में राज्य में शिक्षा प्रणाली बर्बाद हो गई है, कोई नया उद्योग स्थापित नहीं हुआ है और बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार सभी कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावित करता है.

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने कहा कि इससे एनडीए पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा. आरएलजेपी का गठन 2021 में लोक जनशक्ति पार्टी में विभाजन के बाद हुआ था. चिराग पासवान और पारस के बीच मनमुटाव हो गया था. 

लोकसभा चुनाव से पहले अपना मंत्रिमंडल पद छोड़ा

नीतीश कुमार ने पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले अपना मंत्रिमंडल पद छोड़ दिया था, जब उनके भतीजे की राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को एनडीए के घटक के रूप में चुनाव लड़ने के लिए पांच सीटें मिली थीं. समाचार एजेंसी पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल पारस को बिहार सरकार द्वारा प्रदान किया गया बंगला भी खाली करने के लिए कहा गया था, जहां से वह अपनी पार्टी चलाते थे और इसे चिराग पासवान को आवंटित कर दिया गया था.

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