Bihar Elections 2025: सीट के लिए बदल रही पार्टी... परिवार के लिए छोटे दलों पर भरोसा कर रहे नेता

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियों के बीच 'परिवारवाद' की राजनीति चर्चा में है.जहां एक ओर वोटर लिस्ट अपडेट हो रही है और नेता क्षेत्रीय दौरे कर रहे हैं, वहीं कई नेता अपने बेटा-बेटियों के लिए टिकट की जोड़-तोड़ में लगे हैं, जिससे चुनावी माहौल गर्म होता जा रहा है.

Imran Khan claims
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Bihar Elections 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तैयारियां जोरों पर हैं और राजनीतिक हलकों में इस बार चुनावी रणनीति के साथ-साथ 'परिवारवादी राजनीति' भी खूब चर्चा में है. वोटर लिस्ट अपडेट हो रही है, नेता अपने क्षेत्रों में दौरे कर रहे हैं, और दलों के बीच सीट बंटवारे को लेकर अंदरखाने बैठकों का दौर चल रहा है. लेकिन इन सबके बीच नेताओं की असली ‘चालाकी’ अपने बेटा-बेटियों को टिकट दिलवाने को लेकर दिखाई दे रही है.

राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि कई मौजूदा सांसद, पूर्व सांसद और मंत्री अपने बेटों-बेटियों को हर हाल में विधायक बनाना चाहते हैं. जब अपनी पार्टी से बात नहीं बन रही, तो ये नेता गठबंधन के दूसरे दलों से टिकट के लिए जुगाड़ में लग गए हैं. खासतौर से BJP और JDU के कई नेता चिराग पासवान की LJP (रामविलास), जीतनराम मांझी की 'हम', उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो और मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी की सीटों पर नजर गड़ाए हुए हैं.

बिहार चुनाव में नया ट्रेंड

एक दिलचस्प ट्रेंड यह भी है कि नेता खुद तो अपनी पार्टी से चुनाव लड़ना चाहते हैं, लेकिन अपने बेटा-बेटी के लिए किसी दूसरे दल से टिकट की जुगत में लगे हैं. ठीक वैसे ही जैसे 2024 के लोकसभा चुनाव में हुआ था. तब बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी की बेटी शांभवी चौधरी LJP-आर से मैदान में थीं, जबकि मंत्री महेश्वर हजारी के बेटे सन्नी हजारी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे. दोनों पिता सत्ता में, लेकिन बच्चों के लिए अलग दलों की राह!

आलोक सिंह ने की रालोमो पार्टी जॉइन

हाल ही में जदयू मंत्री संतोष सिंह के भाई आलोक सिंह ने उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोमो जॉइन कर ली है. कहा जा रहा है कि उन्हें जदयू से टिकट मिलने की उम्मीद नहीं थी, इसलिए उन्होंने दल बदल लिया. इसी तरह पूर्व राजद विधायक गुलाब यादव की बेटी बिंदु यादव वीआईपी पार्टी में शामिल होकर झंझारपुर सीट से चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं.

अब देखना यह है कि 2025 में कितने नेता खुद को और अपने परिवार को अलग-अलग दलों से विधानसभा तक पहुंचाने में कामयाब होते हैं. लेकिन इतना तय है कि इस बार चुनाव में नारे कम और "परिवार के लिए टिकट की सेटिंग" ज़्यादा सुनाई दे रही है!

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