'जमीन पर सोए, ट्रेन में धक्के खाए', साउथ अफ्रीका के खिलाफ फाइनल मैच से पहले भारत की पहली कप्तान ने सुनाई संघर्ष की कहानी
टीम इंडिया ने विमेंस वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में अपनी जगह बना ली है. ऐसे में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पहली कप्तान ने विमेंस टीम के शुरुआती संघर्षों को याद किया है.
नई दिल्ली: भारतीय महिला क्रिकेट टीम रविवार, 2 नवंबर को डीवाई पाटिल स्टेडियम में साउथ अफ्रीका के खिलाफ वनडे विश्व कप फाइनल खेलेगी. हरमनप्रीत कौर की अगुवाई वाली टीम ने सेमीफाइनल में सात बार की चैंपियन ऑस्ट्रेलिया को हराकर फाइनल में जगह बनाई.
अब लैरा वोल्वार्ड्ट की टीम से मुकाबला होगा. इस बड़े मौके से पहले, भारत की पहली महिला कप्तान शांता रंगास्वामी ने पुराने दिनों की मुश्किलों को याद किया. उन्होंने बताया कि कैसे महिलाओं को मैदान के बाहर भी भेदभाव और गालियों का सामना करना पड़ता था.
शुरुआती दौर की कठिनाइयां
शांता रंगास्वामी 1976 में भारतीय महिला टीम की पहली कप्तान बनीं और 1991 तक खेलीं. उन्होंने पीटीआई से बातचीत में बताया कि उस समय भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) से महिलाओं को कोई खास मदद नहीं मिलती थी. दौरों पर टीम अनारक्षित ट्रेन कोच में सफर करती थी. धक्के खाते हुए यात्रा करना आम था."
हम बिना रिजर्वेशन वाले डिब्बों में चढ़ते थे, धक्के खाते थे. रात को डॉर्मेट्री में फर्श पर सोना पड़ता था. अपना बिस्तर और जरूरी सामान खुद ढोना होता था. क्रिकेट किट पीठ पर बैग की तरह बांधते और एक हाथ में सूटकेस पकड़ते."
ग्रुप स्टेज की चुनौतियां और वापसी
इस विश्व कप में भी भारत को शुरुआत में झटके लगे. ग्रुप स्टेज में तीन मैच लगातार हारने पर खिलाड़ियों को सोशल मीडिया और बाहर गालियां मिलीं. सेक्सिज्म और मिसोजिनी का शिकार होना पड़ा लेकिन टीम ने एकजुट होकर वापसी की. सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया को मात देकर फाइनल तक पहुंची.
आज की सुविधाएं और बदलाव
शांता खुश हैं कि अब की पीढ़ी को सभी सुविधाएं मिल रही हैं. उन्होंने कहा, "हमने जो मेहनत की, उसका फल अब दिख रहा है. लड़कियों की कोशिश बीसीसीआई और राज्य संघों का योगदान, सबने मिलकर महिला क्रिकेट को ऊंचा उठाया."
हाल ही में बीसीसीआई ने महिलाओं के मैच फीस को पुरुषों के बराबर कर दिया. सालाना कॉन्ट्रैक्ट में अभी फर्क है लेकिन सपोर्ट पहले से कहीं बेहतर है. जय शाह के बीसीसीआई सचिव रहते सुधार हुए, जिन्होंने महिला क्रिकेट को नई ताकत दी. शांता एपेक्स काउंसिल का हिस्सा थीं और इन बदलावों की गवाह हैं.
नींव का फल और भविष्य
भारत ने 2005 और 2017 में मिताली राज की कप्तानी में फाइनल खेला लेकिन जीत नहीं मिली. अगर इस बार हरमनप्रीत की टीम ट्रॉफी उठाए, तो यह महिला खेलों के लिए ऐतिहासिक पल होगा.
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