'मूव बैक, मूव बैक, आई सेड मूव बैक... और आई विल शूट यू ... ये आवाज सामने से सुनते ही मैं बर्फ हो गया, पांवों में बेडियों-सी बंध गईं, होठ सफेद हो गए, हलक जी को आया, शरीर पसीने के सागर में गोते खाने लगा और आंखों के सामने मौत नाचने लगी.. ना जाने कौन-कौन याद आया.. मां, पापा, भाई, बहन, हनुमान जी और वो सभी जिसे मैंने बचपन से मुश्किल और मुसीबत में याद किया था. मगर काम कोई भी आने वाला नहीं था. मेरे जीवन की डोर इस वक्त उस इंसान के उंगलियों से बंधी थी, जो मेरे सामने AK 47 थामे खड़ा था. सिर से पांव तक काले लिबास में लिपटा.
लम्बाई रही होगी यही कोई 6 फीट. उसकी दो आंखें बल्ब की तरह चमक रही थीं. यमदूत से कम नहीं लग रहा था. साधे कदमों से गन लिए वो आगे बढ़ रहा था. इजरायली सैनिक था या नहीं, उसे लेकर मैं मुतमईन आज भी नहीं हूं, क्योंकि बाकी इजरायली सैनिकों से वो अलग दिख रहा था. उसकी बंदूक तैयार थी. अंदर कैद गोलियां अपने लोहे पर मरने वाले का नाम लिखे जाने का इंतजार कर रही थीं और सामने मैं दोनों हाथ ऊपर किए रुंधी हुई आवाज में चिल्ला रहा था....इंडिया... इंडिया... प्रेस... प्रेस... रिपोर्टर... रिपोर्टर... डोन्ट फायर... डोन्ट... डोन्ट फायर.. मौत से ये मेरा पहला सामना था.. मैं चंदन भारद्वाज, इंडिया डेली लाइव का रिपोर्टर इजरायल फिलिस्तीन युद्ध से इस वक्त चैनल पर लाइव नहीं था.
जिंदगी में इस तरह मौत से मुलाकात मैंने सिर्फ फिल्मों में देखी थी या किस्से कहानियों में सुनी थी, लेकिन आज मेरा उससे खुद का सामना हो रहा था. हालात इतनी नाजुक थी और मरने का डर इतना था कि मेरे दिमाग को लकवा-सा मार गया... मैं घबराहट में डरते-डरते अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ने की कोशिश करने लगा और उसका गेट खोलना चाहा... लेकिन गेट खुल नहीं रहा था. जब नजर ड्राइवर की तरफ गई तो लगा कि मैं किसी दूसरे की गाड़ी को अपना समझ बैठा था.
मेरी इस बदहवासी ने इजरायली कमांडो के मन में और शक पैदा कर दिया..उसने अपनी गन को फिर लोड किया और धात लगाए शिकारी की तरह आगे बढ़ता जा रहा था. हालात भी थे और हथियार भी, लेकिन शायद उसकी नीयत मुझे मारने की नहीं थी. वो तो बस अपनी मातृभूमि की रक्षा करना चाहता था.
ट्रिगर दबाने से पहले वो निश्चिंत होना चाहता था कि उसने किसी गलत इंसान को तो नहीं मार दिया. ऊपर से मैं निहत्था था. मेरे हाथ में अगर कुछ था, वो था इंडिया डेली लाइव का माइक. वहीं मेरी पहचान भी थी और जीवन रक्षक ढाल भी. जिंदगी और मौत के बीच कुछ सेकेंड की दूरी थी. किस्मत का सिक्का किस करवट बैठने वाला था, वो सबकुछ यमराज से दिखने वाले कमांडो पर निर्भर था.
वो एक बार को आजू-बाजू भी देख रहा था, मानो समझना और जानना चाह रहा था कि मेरा कोई और साथी तो आसपास नहीं है. अचानक उसकी और मेरी नजर एक साथ मेरे कैमरापर्सन देवन धामी पर गई, जो उस वक्त कुछ दूर खड़े इस खतरे से अनजान सामने खड़े टैंक और सैनिकों के वीडियो बनाने में मसरूफ थे. हिम्मत नहीं हुई कि धामी जी को आवाज लगाऊं - देखो, मैं यहां मर रहा हूं और आप वीडियो बना रहे हो.
अगले एक-दो मिनट खामोशी में बीते. मुझे डर था कि कहीं पीछे मुडूंगा तो कमांडो पीठ पर गोली ना मार दे. मन में सबसे पहले रॉयटर वाले हिन्दुस्तानी फोटोग्राफर दानिश का नाम याद आया. लगा युद्धभूमि में कहीं मैं भी शहीद तो नहीं हो जाऊंगा! फिर अपना सारा हौसला मैंने जुटाया और आवाज लगाई - धामी जी, रुको इधर आओ. मेरी आवाज सुनते ही मेरा ड्राइवर गाडी से निकला. वो थोड़ा पीछे खड़ा था.
ऐसे बच पाई जान सामने का सीन देखते ही वो हालात की गंभीरता को समझ गया. उसने इजरायली में उस कमांडो से कुछ कहा. उसकी आवाज सुनते ही कमांडो ने गन नीचे कर ली और फिर मेरी तरफ आसान कदमों से आगे बढ़ा, पास आया और बोला - गो बैक... डोन्ट स्टे हियर... डेंजर! ड्राइवर गाड़ी स्टार्ट कर चुका था. धामी अपने कैमरे के साथ गाड़ी में बैठ चुके थे और मैं उस फौजी के हाथ पकड़े जड़ हो गया. उन उंगलियों को धन्यवाद देना चाह रहा था जिसने ट्रिगर पर अपनी ताकत की आजमाइश नहीं की.
गाड़ी मुड़ी और आगे बढ़ने लगी तो गाजा पट्टी पीछे छूट रही थी. वही गाजा पट्टी जिसकी किस्मत में तबाही लिखी है. जिस शहर का मलबा हमास से इजरायल का बदला होगा. चंद मिनट पहले वो गाजा शहर मेरी आंखों के सामने था, लेकिन मेरे और गाजा पट्टी के बीच एक सीमा था. जिसे लांघने के लिए सैकड़ों इजरायली टैंक खड़े थे. युद्ध में एक भी कदम आगे बढ़ना कई बार सैकड़ों मीलों के फासले को तय करना होता था. इजरायल के लिए हालत कुछ ऐसी ही थी. रास्ते का गुजरता हुआ हर पोल एक ख्याल को पीछे छोड़ रहा था.
मैं आगे बढ़ता अपने होटल की तरफ लौट रहा था. मन कर रहा था हिन्दुस्तान होता तो जरुर हनुमान मंदिर जाता और सवा किलो लड्डू चढ़ा आता. इतने में फोन की घंटी बजी. एक पुराने दोस्त का फोन था. फोन उठाया तो आवाज आई... गुरु, क्या लगता है इजरायल जीत पाएगा? है दम उसमें... खैर छोड़ो! हारे-जीते कोई भी... तुम तो फॉरेन ट्रिप के मजे ले रहे हो... लेते रहो... मैंने फोन काट दिया.