900 साल पुराने शिव मंदिर को लेकर क्यों एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं थाईलैंड और कंबोडिया?
थाईलैंड और कंबोडिया के बीच 900 साल पुराने शिव मंदिर प्रेह विहियर को लेकर तनाव फिर बढ़ गया है. सीमा पर हुई ताजा झड़प, पुराने नक्शों और अदालत के फैसलों ने विवाद को और जटिल बना दिया है.
थाईलैंड और कंबोडिया की सीमा पर स्थित प्राचीन प्रेह विहियर मंदिर दशकों से दोनों देशों के बीच तनाव का केंद्र बना हुआ है. हाल में हुए एयर स्ट्राइक और गोलीबारी ने एक बार फिर इस विवाद को उभार दिया है. मंदिर पर दावा, पुराने फ्रांसीसी नक्शों की व्याख्या और अंतरराष्ट्रीय अदालत के फैसले- इन सबने मिलकर विवाद को उलझाया है. मंदिर धार्मिक धरोहर होने के साथ-साथ दोनों देशों की राष्ट्रीय पहचान और राजनीतिक प्रतिष्ठा का प्रतीक बन गया है.
ताज़ा झड़प कैसे शुरू हुई?
थाईलैंड ने दावा किया कि कंबोडियाई सेना ने तड़के सीमा पर गोलीबारी की, जिसमें उसके एक सैनिक की मौत हुई. इसके जवाब में थाईलैंड ने एयर स्ट्राइक की. दोनों देश युद्धविराम तोड़ने का आरोप एक-दूसरे पर लगा रहे हैं, जबकि कुछ महीने पहले अमेरिका की मध्यस्थता से संघर्ष विराम कराया गया था.
मंदिर विवाद की ऐतिहासिक जड़
विवाद की शुरुआत 1907 के उस फ्रांसीसी नक्शे से होती है, जिसमें प्रेह विहियर मंदिर कंबोडिया की सीमा में दिखाया गया. थाईलैंड अब कहता है कि यह नक्शा 1904 की संधि के विपरीत था. दांगरेक पर्वतों की प्राकृतिक जल विभाजक रेखा को आधार मानें, तो मंदिर थाई सीमा में आता है.
ICJ का फैसला और अधूरा समाधान
1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने मंदिर पर कंबोडिया का अधिकार स्वीकार किया और थाई सैनिकों की वापसी का आदेश दिया. लेकिन मंदिर के आसपास के 4.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अधिकार स्पष्ट नहीं हो सका. 2013 में अदालत ने फिर कंबोडिया के पक्ष में फैसला दिया, पर सीमा के बाकी विवाद वार्ता पर छोड़ दिए.
2008 में क्यों भड़का तनाव?
कंबोडिया ने 2008 में मंदिर को यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में शामिल कराया. थाईलैंड ने इसका विरोध किया, क्योंकि उसे आशंका थी कि इससे आसपास का इलाका कंबोडिया के नियंत्रण में माना जाएगा. इसके बाद दोनों देशों के बीच कई बार हिंसक झड़पें हुईं, जिनमें नागरिकों और सैनिकों की मौत हुई और हजारों लोग विस्थापित हुए.
राजनीति पर भी पड़ा असर
मंदिर विवाद ने थाईलैंड की राजनीति को भी हिला दिया. हालिया संघर्ष के दौरान थाई प्रधानमंत्री और कंबोडियाई नेता के बीच एक फोन कॉल लीक हुई, जिस पर थाई सेना और राजनीतिक दलों ने नाराज़गी जताई. इसके बाद सरकार अल्पमत में आ गई और अंततः प्रधानमंत्री को पद छोड़ना पड़ा.