'न साबुन, न कंघी, न पानी न पैसा...' गाजा में आई ऐसी गरीबी कि लड़कियां मुंडवा रहीं सिर

7 अक्टूबर का एक हमला और गाजा तबाह. हमास ने इजराइल से पंगा लिया लेकिन गाजा में रह रहे निर्दोष लोगों की जिंदगी तबाह हो गई. न उनके पास जमीनें रहीं, न घर, न कमाई के साधन. पूरा का पूरा इलाका मरुथल में बदल गया है, जहां सिर्फ खंडहर ही नजर आ रहे हैं. ऐसी तबाही मची है कि किसी ने कभी सोची नहीं होगी. हैरानी की बात ये है कि महीनों बीत गए हैं लेकिन इजरालय ने गाजा और रफाह में अपने हमले बंद नहीं किए हैं. इस त्रासदी में गाजा तबाह हो गया है.

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कभी सोचा है कि किसी देश में ऐसी त्रासदी फैलेगी कि बच्चियों को पास अपने बाल संवारने के लिए कंघी और शीशा तक मुहैया नहीं हो पाएगा. उनके पास खाने की किल्लत रहेगी और बुनियादी चीजों के लिए तरसना पड़ेगा? ये फसाना नहीं है, गाजा की हकीकत है. गाजा में ऐसी गरीबी आई है, संसधन इतने बुरे तरीके से तबाह हो गए हैं कि जरूरी चीजों के लिए लोग आंसू बहा रहे हैं. गाजा की एक बाल रोग विशेषज्ञ लोबना अल-अजाजिया से एक लड़की ने अपने अनसुलझे बालों को सुलझाने के लिए कंघी मांगी तो उन्होंने कहा कि बाल मुंडवा लो, क्योंकि उनके पास कंघी ही नहीं है. 

गाजा के लोग बुनियादी चीजों के लिए ऐसे तरसे हैं कि वे कई-कई दिन तक नहा भी नहीं पा रहे हैं. वहां पानी की किल्लत है, लोग प्यासे हैं. जो मदद वैश्विक संस्थाओं की ओर से मिलनी चाहिए थी, वह रोक दी गई है. वजह ये है कि इजरायल ने रफाह बॉर्डर सील कर दिया है. मिस्र बॉर्डर पर पहरा है, इजरायली तोपें गरज रही हैं, जिनसे बाहर आने की कोई राह नजर नहीं आती है. ऐसी त्रासदी शायद ही किसी देश ने देखी हो, जैसी त्रासदी से फिलिस्तीन गुजर रहा है.

कंघी-साबुन के लिए तरस रहे लोग

सिर्फ कंघी ही नहीं, गाजा में एक बड़ी आबादी दाना-पानी के लिए संघर्ष कर रही है. लड़कियों की हालत इतनी बुरी है कि पूछिए मत. पीरियड के दिनों में भी उनके पास न तो सैनिटरी पैड है, न बाथरूम-टॉयलेट की व्यवस्था है जहां वे जा सकें. जगह-जगह वीरान आबादी है, वहीं कुछ जगहों पर इतनी भीड़ है कि वहां तिल रखने की जगह नहीं है. अकेले लड़कियां विरान इलाकों में जाने से इसलिए डर रही हैं कि वहां दुश्मनों की बमबारी हो रही है. लड़कियों पर फंगल इन्फेक्शन का खतरा मंडरा रहा है. 

भीषण गर्मी, चर्म रोग का शिकार हो रहे बच्चे

एक डॉक्टर ने रॉयटर्स के साथ हुई बातचीत में कहा कि यहां चर्म रोग आम हो गया है. लोगों के हाथों में रेशे पड़ रहे हैं, चेहरे पर चकत्ते पड़ रहे हैं. कैंप में सार्वजनिक तौर पर ये बीमारी फैल गई है. राहत शिविरों में भीषण गर्मी पड़ रही है और लोग बेहाल हैं. पसीने से भीगे बच्चे अपनी पीड़ा भी नहीं कह पा रहे हैं. लोगों के पास नहाने की व्यवस्था नहीं है. 

राहत शिविरों में है दवाइयों की किल्लत

डॉ, लोबिना ने गाजा के ककाल अदवान हॉस्पिटल में काम करती थीं. इजरायली तोप ऐसे इस इलाके में गरजे कि उन्हें विस्थापित होना पड़ा. गाजा के ज्यादातर स्वास्थ्य कर्मी मरीजों का इलाज कर रहे हैं. अब वे राहत शिविरों में सबके मददगार बने हैं लेकिन उनके पास दवाइयों की किल्लत है. इजरालयी हमले में उनका अपना घर ध्वस्त हो गया है, अब सिर्फ निशानियां बची हैं, जहां जाने का मतलब मौत है.

इतनी महंगी दवाइयां, लोगों की औकात से बाहर

जो दवाइयां हैं, उसे लोग खरीद नहीं पा रहे हैं. जले हुए घावों पर लगाने वाली एक ट्यूब भी करीब 4,515 रुपये में मिल रही है. रफाह बॉर्डर जब से इजराइल ने सील किया है, जरूरतमंदों तक वैश्विक संस्थाओं की भी मदद नहीं पहुंच पा रही है. इजरायल इन इलाकों में मानवीय मदद भी नहीं पहुंचने दे रहा है. संयुक्त राष्ट्र की संस्थाएं भी यहां बेबस हैं. उनका कहना है कि बॉर्डर पर आवाजाही शुरू कर देनी चाहिए, जिससे लोगों तक मानवीय मदद पहुंच सके. यहां भीषण तबाही मची है और बीमारियां कभी खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं.