नहीं रहीं जेन गुडऑल, जिनकी एक रिसर्च ने चिंपैंजियों को लेकर बदल दी थी दुनिया की सोच

ब्रिटिश प्राइमेटोलॉजिस्ट और पर्यावरण कार्यकर्ता जेन गुडऑल का 1 अक्टूबर को निधन हो गया. उन्होंने न केवल चिंपैंजी के व्यवहार को समझने का तरीका बदल दिया, बल्कि पूरी दुनिया को यह सिखाया कि प्रकृति से प्रेम करना ही मानवता का सबसे बड़ा रूप है.

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Kuldeep Sharma

जेन गुडऑल, एक ऐसा नाम जो वैज्ञानिक शोध से आगे बढ़कर इंसानियत की आवाज बन गया. ब्रिटेन के बौर्नमाउथ में जन्मी यह बच्ची, जो कभी मुर्गी के अंडे देने का रहस्य जानने के लिए मुर्गीघर में छिपी थी, आगे चलकर पूरी दुनिया की पर्यावरण चेतना की प्रतीक बन गई. 

जेन ने बचपन से जो सपना देखा, वही उनकी जीवन यात्रा बन गया. जंगलों में चिंपैंजियों के बीच रहकर उन्हें समझना, और फिर उनकी भाषा में दुनिया को प्रकृति से जोड़ना.

बचपन से जन्मा ‘चिंपैंजी प्रेम’

जेन का जन्म 3 अप्रैल 1934 को हुआ था. उनके पिता ने एक वर्ष की उम्र में उन्हें ‘जुबली’ नाम का चिंपैंजी डॉल दिया था, जो उनका पहला दोस्त और आगे चलकर उनका प्रेरणा स्रोत बना. बचपन में वे घंटों जानवरों को निहारतीं और उनके व्यवहार को समझने की कोशिश करतीं. वे कहती थीं, 'मेरी पहली वैज्ञानिक खोज तब हुई जब मैं मुर्गी के अंडे देने का रहस्य जानने के लिए मुर्गीघर में छिप गई थी.' यही जिज्ञासा उन्हें अफ्रीका तक ले गई, जहां उन्होंने चिंपैंजियों की दुनिया को अपने अध्ययन का केंद्र बनाया.

बिना डिग्री के बना विज्ञान का नया इतिहास

जेन ने अपने सपनों के लिए वेट्रेस का काम किया और पैसे जोड़कर अफ्रीका पहुंचीं. वहीं उनकी मुलाकात हुई मशहूर पुरातत्वविद डॉ. लुई लीकी से, जिन्होंने उन्हें नैरोबी के नेशनल म्यूज़ियम में सचिव के रूप में काम का अवसर दिया. लीकी ने ही उन्हें तंजानिया के गॉम्बे जंगल में चिंपैंजियों का अध्ययन करने भेजा. 1960 में जेन ने बिना किसी औपचारिक डिग्री के फील्ड रिसर्च शुरू की, और यहीं उन्होंने वह खोज की जिसने मानव और पशु व्यवहार की परिभाषा ही बदल दी- चिंपैंजी भी उपकरण बनाते और इस्तेमाल करते हैं.

'डेविड ग्रेबीयर्ड' से दोस्ती और भावनाओं का विज्ञान

शुरुआत में चिंपैंजियों ने उन्हें स्वीकार नहीं किया, लेकिन महीनों की धैर्यपूर्ण कोशिशों के बाद 'डेविड ग्रेबीयर्ड' नामक चिंपैंजी उनके करीब आया. इसी के माध्यम से जेन ने जाना कि वे न केवल बुद्धिमान हैं, बल्कि भावनात्मक भी हैं. उन्होंने हर चिंपैंजी को नाम दिया- गॉलिएथ, फिफी जैसे नाम और उन्हें संख्याओं में नहीं बांधा. कई वैज्ञानिकों ने इसे भावुकता कहा, लेकिन जेन ने साबित किया कि विज्ञान में करुणा भी हो सकती है.

वैज्ञानिक से कार्यकर्ता बनने तक की यात्रा

1986 में 'अंडरस्टैंडिंग चिंपैंजीज' सम्मेलन ने जेन के जीवन की दिशा बदल दी. जब उन्होंने जाना कि जंगलों में उनके प्रिय चिंपैंजी तेजी से विलुप्त हो रहे हैं, तो उन्होंने खुद को एक वैज्ञानिक से कार्यकर्ता में बदल लिया. उन्होंने Jane Goodall Institute की स्थापना की, जो आज भी पर्यावरण संरक्षण और पशु अधिकारों के लिए काम करता है. 2002 में उन्हें संयुक्त राष्ट्र की Messenger of Peace की उपाधि दी गई. उनका संदेश आज भी गूंजता है- 'मेरा सपना है एक ऐसी दुनिया बनाना जहां मनुष्य और प्रकृति एक साथ सामंजस्य में रहें.'