menu-icon
India Daily

दिल्ली में कभी भी आ सकती है अफगानिस्तान जैसी तबाही, भारत-पाकिस्तान-काबूल पर भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा क्यों?

2001 के विनाशकारी भुज भूकंप के बाद, भारत लगातार भूकंपीय खतरों का सामना कर रहा है. 2021 में असम में एक शक्तिशाली भूकंप आया था जबकि दिल्ली में इस साल जनवरी से जुलाई तक 17 से अधिक मामूली झटके महसूस किए गए.

Sagar
Edited By: Sagar Bhardwaj
Why are India-Pakistan-Afghanistan most vulnerable to earthquakes
Courtesy: Why are India-Pakistan-Afghanistan most vulnerable to earthquakes

अफगानिस्तान में आए 6.0 तीव्रता के शक्तिशाली भूकंप ने कम से कम 812 लोगों की जान ले ली और 2,817 लोग घायल हो गए. यह घटना दक्षिण एशिया, विशेष रूप से भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में बढ़ते भूकंपीय जोखिमों को उजागर करती है.

भारत में कभी भी आ सकता है विनाशकारी भूकंप

2001 के विनाशकारी भुज भूकंप के बाद, भारत लगातार भूकंपीय खतरों का सामना कर रहा है. 2021 में असम में एक शक्तिशाली भूकंप दर्ज किया गया, जबकि दिल्ली में इस साल जनवरी से जुलाई तक 17 से अधिक मामूली झटके महसूस किए गए. पाकिस्तान के कराची सहित कुछ हिस्सों में मार्च और जून में मध्यम तीव्रता के भूकंप आए. हिंदू कुश और हिमालयी क्षेत्रों में भूकंपों की आवृत्ति में वृद्धि देखी गई है.

आखिर इस क्षेत्र में क्यों आते हैं इतने अधिक भूकंप

इन भूकंपों का मुख्य कारण भारतीय और यूरेशियन टेक्टोनिक प्लेटों का निरंतर टकराव है. हिमालयी क्रस्ट अस्थिर बना हुआ है, जिससे यह क्षेत्र विशेष रूप से संवेदनशील है. भारतीय प्लेट प्रतिवर्ष लगभग पांच सेंटीमीटर की गति से उत्तर की ओर बढ़ रही है, जिससे सक्रिय फॉल्ट लाइनों में तनाव उत्पन्न होता है. 

चाइना की ओशन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, भारतीय प्लेट सुचारू रूप से यूरेशियन प्लेट के नीचे नहीं खिसक रही, बल्कि यह विभाजित होकर पृथ्वी के मेंटल में प्रवेश कर रही है. इस प्रक्रिया को डिलैमिनेशन कहते हैं, जो भूकंपीय गतिविधियों को और तीव्र करती है.

भूवैज्ञानिक और पर्यावरणीय कारक

हिमालयी क्षेत्र की भूवैज्ञानिक विविधता, ऊंचे पर्वतों से लेकर गहरी घाटियों और मोटी तलछटी परतों तक, भूकंप के जोखिम को बढ़ाती है. हिमालयी तलहटी, उत्तरी भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में लगातार भू-हलचल होती रहती है.

जलवायु परिवर्तन की भी बड़ी भूमिका

वैश्विक तापमान में वृद्धि से हिमालय में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं. अध्ययनों के अनुसार, इस सदी के अंत तक क्षेत्र 80% तक ग्लेशियर खो सकता है. ग्लेशियरों के पिघलने से पृथ्वी की लिथोस्फेयर में उछाल आता है और पिघला हुआ पानी टेक्टोनिक प्लेटों के बीच घर्षण को कम करता है, जिससे भूकंप की संभावना बढ़ती है. विशेषज्ञ जलवायु-अनुकूल नीतियों, आपदा तैयारियों, सीमा-पार सहयोग और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी की आवश्यकता पर जोर देते हैं.