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आखिर क्यों ब्रिटिश सरकार ने ‘वंदे मातरम’ को माना था ‘खतरा’…? इस गीत ने कुछ ऐसे बदली थी आजादी की तस्वीर

आज वंदे मारतम 150 साल का हो गया है और इस गीत ने भारतीयों के दिल पर कैसे अपनी छाप छोड़ी थी और कैसे ये ब्रिटिश सरकार के लिए खतरा बन गया है, चलिए जानते है.

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Shilpa Srivastava

नई दिल्ली: 7 नवंबर… ये वो दिन है जब भारत के राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम को पहली बार लिखा गया था. 2025 में इस गीत को लिखे हुए 150 साल पूरे हो गए हैं. अगर इसके मतलब की बात करें तो यह है- ‘मां, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूं.’ बता दें कि यह गीत बंकिम चंद्र चटर्जी ने 1875 में लिखा था. यह पहली बार बंगदर्शन नाम की एक मैगजीन में छपा था. इसके बाद 1882 में उनके मशहूर उपन्यास आनंदमठ का हिस्सा बन गया.

1896 में, रवींद्रनाथ टैगोर ने कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सेशन के दौरान इस गीत का पहला म्यूजिकल परफॉर्मेंस दिया था. बता दें कि यह पहले वंदे मातरम साहित्य का एक हिस्सा था, लेकिन बाद में यह इससे कहीं ज्यादा बन गया. यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक शक्तिशाली प्रतीक बन गया था. 1905 के स्वदेशी और विभाजन विरोधी आंदोलनों के दौरान, यह गीत आजादी के लिए एक एकजुट बनने का नारा बन गया था. बंगाल, पंजाब और महाराष्ट्र जैसे अलग-अलग क्षेत्रों के लोगों ने इसे गर्व से गाया. 

ब्रिटिश सरकार ने इसे माना अपना खतरा:

इस गीत को ब्रिटिश सरकार ने एक खतरे की तरह माना था. उन्होंने इस गाने को गाने से रोका. स्टूडेंट्स को इस गाने को गाने से मना किया गया. साथ ही कहा कि अगर ऐसा किया तो उन्हें सजा दी जाएगी. हालांकि, भारतीयों ने हार नहीं मानी. बारिसाल से लेकर बॉम्बे तक, भीड़ ने विरोध में वंदे मातरम का नारा लगाना जारी रखा. यह विरोध प्रदर्शनों के दौरान गूंजा और साहस और बलिदान का आह्वान बन गया.

भारत के बाहर भी गीत के चर्चे:

जिस तरह से भारत में इस गीत ने लोगों के दिलों तक का सफर तय किया था, उसी तरह से इस गीत की भावना भारत से बाहर भी फैली. 1907 में, मैडम भीकाजी कामा ने जर्मनी में भारतीय झंडे का एक शुरुआती रूप दिखाया. इस पर वंदे मातरम लिखा हुआ था. मदन लाल ढींगरा जैसे क्रांतिकारियों ने इंग्लैंड में फांसी से पहले यह नारा लगाया था. विदेश में जो भारतीय रहते थे उनके लिए यह गर्व का नारा बन गया. 

जब भारत को आजादी मिली, तो इस गीत को राष्ट्रगान के बराबर का दर्जा दिया  गया. 24 जनवरी 1950 को, राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने घोषणा की कि जन गण मन राष्ट्रगान होगा, जबकि वंदे मातरम को राष्ट्रीय गीत के रूप में सम्मान दिया जाएगा. बंकिम चंद्र चटर्जी जाते-जाते देशभक्ति और भक्ति की एक विरासत छोड़ गए. 150 साल बाद भी, वंदे मातरम भारत के लिए प्यार और गर्व की भावना जगाता रहता है.