संचार साथी ऐप को लेकर क्यों मचा घमासान, फोन निर्माताओं को क्या है समस्या, विपक्ष को किस बात का सता रहा डर?
भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) ने हाल ही में एक नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब देश में बनने वाले या बाहर से आने वाले हर नए मोबाइल फोन में ‘संचार साथी ऐप’ पहले से इंस्टॉल किया हुआ मिलेगा.
नई दिल्ली: भारत सरकार के दूरसंचार विभाग (DoT) ने हाल ही में एक नया आदेश जारी किया है, जिसके तहत अब देश में बनने वाले या बाहर से आने वाले हर नए मोबाइल फोन में ‘संचार साथी’ ऐप पहले से इंस्टॉल किया हुआ मिलेगा. इस आदेश से राजनीतिक बहस भी शुरू हो गई है. मोबाइल कंपनियों को यह नियम लागू करने के लिए 90 दिन का समय दिया गया है. अगर कंपनियां इसका पालन नहीं करती हैं, तो उनके खिलाफ दूरसंचार अधिनियम 2023 और टेलीकॉम साइबर सुरक्षा नियम 2024 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.
संचार साथी ऐप क्या है?
साल 2023 में ‘संचार साथी’ ऐप शुरू किया गया था. इसका उद्देश्य लोगों को मोबाइल से जुड़े फ्रॉड से बचाना और चोरी या गुम होने वाले फोन को ट्रैक करना है. यह ऐप धोखाधड़ी करने के लिए भेजे गए वेब लिंक की रिपोर्ट करने और उन्हें ब्लॉक करने की सुविधा प्रदान करता है.
ऐप की एक खासियत यह है कि यूजर को IMEI नंबर याद रखने की जरूरत नहीं पड़ती. ऐप खुद ही मोबाइल की पहचान कर लेता है. इसके माध्यम से यूजर अपने नाम पर कितने मोबाइल नंबर जारी हैं, यह भी आसानी से पता कर सकते हैं. यह सुविधा उन मामलों में बहुत उपयोगी होती है, जहां किसी की पहचान का गलत इस्तेमाल करके फर्जी मोबाइल सिम निकाली जाती है.
शिकायत दर्ज करने की सुविधा
यह ऐप संदिग्ध लिंक, स्पैम कॉल, धोखाधड़ी वाले संदेश और भारतीय नंबर से आने वाली अंतरराष्ट्रीय कॉल की शिकायत दर्ज करने की सुविधा भी देता है. शिकायत करने के लिए ओटीपी की भी आवश्यकता नहीं होती. ऐप का उद्देश्य टेलीकॉम सेक्टर को अधिक सुरक्षित बनाना और साइबर फ्रॉड को कम करना है.
1.14 करोड़ से अधिक रजिस्ट्रेशन हुए
संचार साथी की वेबसाइट के अनुसार, अब तक इस ऐप की मदद से 42 लाख से ज्यादा मोबाइल फोन ब्लॉक किए जा चुके हैं, जबकि 26 लाख से ज्यादा चोरी या गुम फोन का पता लगाया गया है. संचार साथी ऐप पर 1.14 करोड़ से अधिक रजिस्ट्रेशन हो चुके हैं.
विवाद क्यों हुआ?
सरकार के इस आदेश का कांग्रेस ने कड़ा विरोध किया है. पार्टी का कहना है कि किसी भी नागरिक के फोन में ऐसा सरकारी ऐप जबरन डालना और उसे हटाने की अनुमति भी न देना निजता के अधिकार का उल्लंघन है.
कांग्रेस नेता केसी वेणुगोपाल ने इसे असंवैधानिक बताया. उनका कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21 में नागरिकों की निजता को जीवन और स्वतंत्रता का हिस्सा माना गया है. कांग्रेस का आरोप है कि ऐसा ऐप, जिसे फोन से हटाया नहीं जा सकता, लोगों की व्यक्तिगत गतिविधियों और कॉल पर नजर रखने का तरीका बन सकता है. इसलिए पार्टी ने इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है.
'निजी जीवन को अपने कब्जे में ले लेगा'
वहीं, कार्ति चिदंबरम ने इस ऐप को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. कार्ति चिदंबरम ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स' पर पोस्ट शेयर किया है. उन्होंने प्री-इंस्टॉल्ड ऐप को 'Pegasus++' करार दिया. चिदंबरम ने कहा कि ऐप की मदद से बिग ब्रदर हमारा फोन और काफी हद तक हमारे पूरे निजी जीवन को अपने कब्जे में ले लेगा.
प्रियंका चतुर्वेदी ने क्या कहा
शिवसेना (यूबीटी) की नेता प्रियंका चतुर्वेदी का इस मामले में एक बयान सामने आया है. प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि यह कदम 'एक और बिग बॉस निगरानी का मामला' है. उन्होंने आगे कहा कि व्यक्तिगत मोबाइलों में सेंध लगाने के ऐसे छद्म तरीकों का विरोध किया जाएगा. अगर IT मंत्रालय को लगता है कि मजबूत निवारण प्रणालियां बनाने के बजाय वह निगरानी प्रणालियां बनाएगा, तो उसे विरोध के लिए तैयार रहना चाहिए.
टकराव की स्थिति पैदा होगी?
रिपोर्ट के मुताबिक, सरकार के इस नए आदेश से एप्पल के साथ टकराव की स्थिति बन सकती है. एप्पल पहले भी ऐसे सरकारी निर्देशों का विरोध कर चुका है और उसका कहना है कि इस तरह के आदेश से यूजर्स की प्राइवेसी और सुरक्षा पर खतरा हो सकता है. इस मामले में एप्पल, सैमसंग और श्याओमी से सवाल पूछे गए, लेकिन इन कंपनियों की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली. उद्योग से जुड़े दो लोगों ने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि सरकार ने यह आदेश जारी करने से पहले मोबाइल कंपनियों से कोई सलाह या चर्चा नहीं की.
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