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पहली बार पैसिव यूथेनेशिया को मिली सकती है सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी, कोर्ट ने AIIMS को दिए ये निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने AIIMS में सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड बनाने का आदेश दिया है जो यह जांच करेगा कि पिछले दस साल से वेजिटेटिव स्टेट में पड़े युवक से लाइफ सपोर्ट हटाया जा सकता है या नहीं.

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Km Jaya

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए AIIMS में एक सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड बनाने का आदेश दिया है. यह बोर्ड यह जांच करेगा कि क्या पिछले दस साल से कोमा जैसी अवस्था में पड़े 31 साल के युवक से लाइफ सपोर्ट हटाया जा सकता है. यह मामला भारत में पहली बार न्यायिक स्वीकृति वाले पैसिव यूथेनेशिया का उदाहरण बन सकता है.

युवक को 100 प्रतिशत क्वाड्रीप्लेजिया है और उसकी हालत बेहद खराब हो चुकी है. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि युवक की स्थिति बहुत दयनीय है और उसके शरीर पर गंभीर बेडसोर्स हो चुके हैं. अदालत ने कहा कि बेडसोर्स यह दिखाते हैं कि मरीज को सही देखभाल नहीं मिल रही है और यह स्थिति अत्यंत दर्दनाक है. बेंच ने कहा कि डॉक्टरों ने स्पष्ट रूप से बताया है कि युवक के ठीक होने की कोई संभावना नहीं है.

कोर्ट ने अपने आदेश में क्या कहा?

यह आदेश तब आया जब प्राथमिक मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी. बोर्ड ने मरीज के घर जाकर जांच की और साफ लिखा कि उसकी रिकवरी की संभावना नगण्य है. रिपोर्ट के साथ भेजी गई तस्वीरों में भी गंभीर बेडसोर्स दिखे. इन स्थितियों को देखते हुए अदालत ने कहा कि अब अगला कदम उठाने का समय है और कॉमन कॉज फैसले के तहत सेकेंडरी बोर्ड की राय लेनी जरूरी है.

कब का है यह मामला?

अदालत ने AIIMS को 17 दिसंबर तक रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है. रिपोर्ट आने के बाद सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या फीडिंग ट्यूब और अन्य जीवन सहायक उपचार कानूनी रूप से हटाए जा सकते हैं. यह मामला हरिश राणा नाम के युवक से जुड़ा है. वह 2013 में चौथी मंजिल से गिरने के बाद गंभीर रूप से घायल हो गया था और तब से लगातार बेड पर है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने क्या दिया था फैसला?

हरिश के माता पिता पिछले करीब 13 साल से उसकी देखभाल कर रहे हैं और आर्थिक रूप से टूट चुके हैं. उन्होंने अदालत को बताया कि घर बेचना पड़ा और हर उपाय आजमाया गया, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ. 2024 में दिल्ली हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी क्योंकि युवक वेंटिलेटर पर नहीं था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मौजूदा हालत को गंभीर मानते हुए दुबारा विचार शुरू किया है.

पैसिव यूथेनेशिया 2018 के कॉमन कॉज फैसले के बाद भारत में कानूनी है. हालांकि इसके लिए सख्त मेडिकल और न्यायिक प्रक्रिया जरूरी होती है. अब एआईआईएमएस की रिपोर्ट पर आगे का फैसला निर्भर करेगा.