'ये हिंदू राष्ट्र है, यहां क्रिश्चन का चलेगा नहीं...', सड़क पर सांता क्लॉज की टोपी बेचने से रोका, वीडियो में देखें गुंडई

ओडिशा से वायरल वीडियो में कुछ लोग क्रिसमस के दौरान सांता टोपी बेच रहे स्ट्रीट वेंडर्स को धमकाते दिखे. इस घटना ने धार्मिक असहिष्णुता और गरीबों की रोजी-रोटी पर हो रहे हमलों को लेकर तीखी बहस छेड़ दी है.

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Kanhaiya Kumar Jha

नई दिल्ली: त्योहारी मौसम आमतौर पर खुशियों, आपसी मेलजोल और कमाई के अवसर लेकर आता है. क्रिसमस भी ऐसा ही त्योहार है, जब सड़क किनारे छोटे दुकानदार सजावटी सामान बेचकर अपनी आजीविका चलाते हैं. लेकिन ओडिशा में इस साल क्रिसमस से पहले एक घटना ने त्योहार की भावना को झकझोर दिया. सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में कुछ लोग सांता टोपी बेच रहे स्ट्रीट वेंडर्स को धमकाते नजर आए, जिससे देशभर में नाराजगी फैल गई.

सोशल मीडिया पर सामने आए वीडियो में कुछ पुरुष सड़क किनारे बैठे वेंडर्स के पास जाते हैं. इनमें से एक व्यक्ति पीले कुर्ता-पायजामा में कार से उतरकर वेंडर्स पर चिल्लाता दिखता है. वह सवाल करता है कि वे 'विदेशी त्योहार' से जुड़ी चीजें क्यों बेच रहे हैं. वीडियो में साफ सुना जा सकता है कि वह बार-बार खुद को 'हिंदू राष्ट्र' का हवाला देकर वेंडर्स को डराने की कोशिश करता है.

रोजी-रोटी पर सीधा हमला

वीडियो में मौजूद लोग वेंडर्स पर दबाव डालते हैं कि वे तुरंत अपनी दुकान बंद करें. एक वेंडर मदद के लिए फोन करने की कोशिश करता है, लेकिन मजबूर होकर अपना सामान समेटने लगता है. इसके बाद वही व्यक्ति दूसरे वेंडर के पास जाकर उसे भी धमकाता है. यह दृश्य साफ दिखाता है कि गरीब दुकानदारों को उनकी आजीविका से वंचित करने की कोशिश की जा रही थी, वह भी सार्वजनिक रूप से अपमानित करके.

धार्मिक पहचान को बनाया हथियार

वीडियो में एक व्यक्ति वेंडर से उसका धर्म पूछता है और फिर सवाल करता है कि “हिंदू होकर यह कैसे बेच सकते हो”. वह यह भी कहता है कि यह 'भगवान जगन्नाथ की भूमि' है और ऐसे सामान यहां नहीं चलेंगे. इसके बाद राहगीरों से भी वेंडर्स को वहां से हटाने की अपील की जाती है. यह घटना दिखाती है कि किस तरह धार्मिक पहचान को डर और दबाव का जरिया बनाया गया.

सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रिया

कई यूजर्स ने कहा कि वेंडर्स सिर्फ अपनी रोजी-रोटी कमा रहे थे, न कि किसी पर अपनी आस्था थोप रहे थे. एक यूजर ने लिखा कि बड़े मॉल और शोरूम में ऐसी हिम्मत कोई नहीं दिखाता, निशाना हमेशा गरीब ही बनते हैं. यह टिप्पणी व्यापक रूप से शेयर की गई.

'जियो और जीने दो' की मांग

कई लोगों ने इस घटना को भारत की विविधता और सहिष्णुता के खिलाफ बताया. यूजर्स ने कहा कि मेहनत से कमाई गई रोजी-रोटी का सम्मान होना चाहिए. एक पोस्ट में लिखा गया कि समाज तभी आगे बढ़ता है, जब हम लोगों को उनके काम के आधार पर आंकें, न कि उनके त्योहार या पहचान के आधार पर. यह घटना एक बार फिर धार्मिक सह-अस्तित्व और आजीविका की आजादी पर सवाल खड़े करती है.