महाकुंभ में अनोखे संतों और बाबाओं की उपस्थिति होती है, जिनमें से कुछ के जीवन की कहानी प्रेरणा का स्रोत बन जाती है. ऐसे ही एक संत हैं, जो अपने साधारण जीवन और अद्भुत साधना के लिए जाने जाते हैं पयहारी मौनी बाबा. बुंदेलखंड के महोबा के रहने वाले मौनी बाबा का नाम इन दिनों हर किसी की जुबां पर है. उनका तंबू संगम तट पर लगा है, लेकिन यहां साधु-संतों की तुलना में छात्रों की तादाद ज्यादा नजर आती है.
मौनी बाबा का असली नाम दिनेश स्वरूप ब्रह्मचारी है, और वह प्रतापगढ़ के चिलबिला स्थित शिवशक्ति बजरंग धाम से आए हैं. 41 साल से मौन रहने वाले मौनी बाबा का जीवन साधना का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है. वह दिन-रात सिर्फ अपने विद्यार्थियों की सेवा में लगे रहते हैं. बाबा का यह अजीब और अनूठा तरीका उन्हें बाकी साधु-संतों से अलग करता है. वह सुबह 4 बजे उठकर छात्रों के नोट्स तैयार करते हैं और फिर दिनभर व्हाट्सएप के माध्यम से उन्हें पढ़ाते हैं. बाबा का यह तरीका उनके लिए हरि भजन से कम नहीं है, क्योंकि यह उनका जीवन का उद्देश्य बन चुका है.
41 वर्षों से मौन हैं बाबा
पयहारी मौनी बाबा के बारे में सबसे अनोखी बात यह है कि उन्होंने पिछले 41 सालों से मौन व्रत धारण कर रखा है. इतना ही नहीं, बाबा पिछले 40 सालों से कुछ भी नहीं खाते हैं. उनका भोजन केवल दूध की चाय पर ही निर्भर है. उनका शरीर पूरे दिन 10 कप चाय पर चलता है. यह व्रत उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखने में मदद करता है और वे अपनी साधना में पूरी तरह से समर्पित रहते हैं. मौनी बाबा के जीवन का यह नियम न केवल उनके अनुयायियों के लिए एक चमत्कारी उदाहरण है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि संयम और समर्पण से क्या कुछ हासिल किया जा सकता है.
एक शिक्षक के रूप में बाबा का योगदान
मौनी बाबा का जीवन केवल साधना तक सीमित नहीं है. वह आजकल छात्रों के लिए एक प्रेरणा बन चुके हैं. वे अपने ज्ञान को छात्र-छात्राओं के बीच बांटने के लिए दिनभर व्हाट्सएप के माध्यम से उन्हें पढ़ाते हैं. उनका मानना है कि पढ़ाई और साधना दोनों का मेल ही जीवन को सही दिशा देता है. उनका यह तरीका उन छात्रों के लिए बेहद प्रभावशाली है जो आधुनिक तकनीकी माध्यमों से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. बाबा की बड़ी खूबी ये भी है कि वो सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स को फ्री कोचिंग भी देते हैं.
मौनी बाबा का जीवन हर किसी के लिए एक प्रेरणा है. 41 वर्षों तक मौन रहकर उन्होंने यह सिद्ध कर दिया है कि सच्ची साधना किसी बाहरी क्रिया पर निर्भर नहीं होती, बल्कि यह आत्म-संयम और समर्पण का परिणाम होती है. उनका जीवन यह भी दर्शाता है कि अगर इंसान ठान ले, तो वह किसी भी बाधा को पार कर सकता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है.