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महाकुंभ 2025: 16,000 श्रमिकों ने 80 दिनों में बदली संगम की सूरत, मेहनत ने रचा इतिहास

बारिश के पश्चात संगम क्षेत्र सहित 97 प्रतिशत मेला क्षेत्र जलमग्न हो जाता है. बाढ़ के घटने पर संगम नोज पर रेत का एक टापू उभर आता है. इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, महाकुंभ के लिए 16,000 श्रमिकों ने 80 दिनों तक मेहनत कर 26 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि तैयार की.

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Ritu Sharma

Mahakumbh 2025: महाकुंभ 2025 की भव्य तैयारियों के तहत संगम तट पर 16,000 मजदूरों ने दिन-रात मेहनत कर 80 दिनों में 26 हेक्टेयर अतिरिक्त भूमि तैयार की. पहले गंगा नदी तीन धाराओं में बह रही थी, जिससे संगम स्थल बाधित हो रहा था. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए इस बाधा को दूर करने और स्नान क्षेत्र को विस्तारित करने के लिए सिंचाई विभाग और नगर निगम के नेतृत्व में एक विशाल ड्रेजिंग अभियान चलाया गया.

कैसे हुआ संगम क्षेत्र का विस्तार?

आपको बता दें कि संगम स्थल को व्यवस्थित करने के लिए क्लीन टेक इंफ्रा कंपनी के मजदूरों ने भारी मशीनरी और ड्रेजर की मदद से नदी के तल से रेत हटाई, किनारों को चौड़ा किया और स्नान क्षेत्र का विस्तार किया. इस कार्य में 16,000 मजदूरों को तैनात किया गया, जिन्होंने विषम परिस्थितियों में कठिन परिश्रम किया.

गौरतलब है कि पहले नदी के बीच में बने रेत के टीलों के कारण गंगा और यमुना का संगम स्पष्ट नहीं हो पा रहा था. इस समस्या के समाधान के लिए 20 से 40 टन वजनी चार ड्रेजरों का उपयोग किया गया, जिनकी सहायता से लगभग 700,000 घन मीटर रेत हटाई गई—जो 187 ओलंपिक आकार के स्विमिंग पूल भरने के लिए पर्याप्त है.

तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए हुआ बड़ा विस्तार

वहीं इस परियोजना का उद्देश्य महाकुंभ में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं के लिए अधिक स्थान उपलब्ध कराना था. इस विस्तार के साथ संगम क्षेत्र अब 2019 की तुलना में लगभग 200,000 अधिक श्रद्धालुओं को समायोजित करने में सक्षम होगा. बताते चले कि क्लीन टेक इंफ्रा कंपनी के प्रबंध संपादक गौरव चोपड़ा ने कहा, ''यह परियोजना तीर्थयात्रियों के लिए एक सहज संगम स्नान सुनिश्चित करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण थी. पहले नदी में द्वीपों की उपस्थिति के कारण गंगा और यमुना की धाराएं स्पष्ट रूप से नहीं मिल पाती थीं, लेकिन ड्रेजिंग के बाद अब गंगा एकल धारा के रूप में संगम में बह रही है.''

पर्यावरण संतुलन का रखा गया ध्यान

बता दें कि परियोजना के दौरान निकाली गई रेत का उपयोग घाट क्षेत्र के विस्तार में किया गया, जिससे अपशिष्ट प्रबंधन भी सुनिश्चित हो सका. टीम ने संगम क्षेत्र की सफाई पर भी विशेष ध्यान दिया और कचरे को प्रभावी ढंग से रिसाइकिल किया.

कठिनाइयों के बावजूद पूर्ण हुआ कार्य

इसके अलावा, मजदूरों के लिए यह कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण था. तेज धाराओं, भँवरों और मच्छरों के प्रकोप के बीच उन्हें काम करना पड़ा. कई मजदूर त्यौहारों और पारिवारिक आयोजनों में शामिल नहीं हो सके, जबकि कुछ को 80 किलो वजन और 350 मिमी व्यास के भारी पाइप लगाने के लिए गंगा में स्कूबा डाइविंग करनी पड़ी.

आईआईटी गुवाहाटी की रिपोर्ट के बाद मिला नया रूप

हालांकि, आईआईटी गुवाहाटी द्वारा जारी रिपोर्ट में यह सुझाव दिया गया था कि शास्त्री ब्रिज के पास नदी के प्रवाह को सुव्यवस्थित करने की आवश्यकता है. इस रिपोर्ट के आधार पर कुंभ मेला प्रशासन ने पहले अपने संसाधनों से इस कार्य को पूरा करने की कोशिश की, लेकिन कार्य की जटिलता को देखते हुए इसे सिंचाई विभाग को सौंप दिया गया. 

बता दें कि बहराइच से प्रयागराज तक लाए गए ड्रेजरों को साइट तक पहुंचाने में पांच दिन लगे. इसके बाद, 75 मजदूरों, 120 टन की क्रेन, तीन 14 टन की हाइड्रा क्रेन और एक बैकहो एक्सकेवेटर की मदद से इन्हें नदी में उतारा गया. लगातार 80 दिनों तक चली इस परियोजना के सफल समापन के बाद अब संगम क्षेत्र श्रद्धालुओं के स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार है. लाखों भक्तजन अब इस ऐतिहासिक स्थल पर बिना किसी बाधा के स्नान कर सकेंगे.