पंगोंग त्सो झील के किनारे पर स्थापित शिवाजी महाराज की प्रतिमा पर विवाद, जनरल ज़ोरावर सिंह की वीरता को लेकर उठे सवाल!

कहा जाता है कि ज़ोरावर सिंह राजा गुलाब सिंह की सेवा में शामिल हो गए थे, जिन्हें महाराजा रणजीत सिंह ने अपनी जागीर की रक्षा के लिए सेना बनाए रखने की अनुमति दी थी. इसके बाद उन्हें रियासी और बाद में किश्तवाड़ और कुसल का गवर्नर नियुक्त किया गया था.

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Mayank Tiwari

दिसंबर 2024 के आखिरी हफ्ते में एक विवाद ने जन्म लिया, जब 14 कोर के जनरल ऑफिसर कमांडिंग ने लद्दाख की पंगोंग त्सो झील के किनारे मराठा योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा का उद्घाटन किया. इस कदम के खिलाफ रिटायर्ड जनरलों, लद्दाखियों और डोगरों से विरोध की आवाजें उठी, जिन्होंने प्रतिमा की स्थान पर सवाल उठाया और सुझाव दिया कि यदि किसी प्रतिमा का निर्माण किया जाना था, तो अन्य ऐतिहासिक नायकों को इसमें प्राथमिकता मिलनी चाहिए थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इनमें से एक प्रमुख नाम था डोगरा योद्धा जनरल ज़ोरावर सिंह का, जिनकी वीरता लद्दाख़ की भूमि पर यादगार रही. जो जम्मू के राजा गुलाब सिंह के वज़ीर थे और जिन्होंने खालसा राज्य के महाराजा रंजीत सिंह के तहत सैन्य सेवा की थी.

जनरल ज़ोरावर सिंह का शुरुआती जीवन और सैन्य सेवा

जनरल ज़ोरावर सिंह के जन्म को लेकर कई मत हैं. जहां कुछ लोगों का कहना है कि, वह हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के अन्सारा गांव के रहने वाले थे, जबकि कुछ का मानना है कि वह जम्मू-कश्मीर के रीासी के पास कस्सल गांव के निवासी थे. समकालीन ग्रंथ 'गुलाब नामा' में उन्हें 'ज़ोरावर सिंह काहलूरिया' कहा गया है, जो यह संकेत करता है कि वह काहलूरिया राजपूत कबीले से थे.

साल 1834 में, ज़ोरावर सिंह ने अपने मुख्यालय किश्तवाड़ से एक छोटा लेकिन प्रशिक्षित सैनिक बल लेकर लद्दाख पर आक्रमण किया. उनके साथ केवल 5,000 सैनिक थे, जिनमें कई मुस्लिम सैनिक भी थे. उन्होंने वुर्दवान घाटी, मरीयम ला और सुरु तक यात्रा की और लद्दाख की 5,000 सैनिकों की सेना को हराया.

लद्दाख की विजय और चार अभियानों का विस्तार

डॉ. सी एल दत्ता के अनुसार, जनरल ज़ोरावर सिंह ने सुरु में अपने क़ब्ज़े के बाद फिर से पाश्क्यम में एक और लद्दाखी सेना को पराजित किया. हालांकि, बाद में उन्हें खबर मिली कि ब्रिटिश एजेंट लद्दाख में मौजूद हैं, जबकि महाराजा रंजीत सिंह और ब्रिटिशों के बीच हुए सुतलज समझौते के तहत ब्रिटिशों का लद्दाख में प्रवेश बैन था. इसके बावजूद, राजा गुलाब सिंह से परामर्श के बाद, उन्हें आगे बढ़ने की अनुमति मिली, लेकिन सर्दियों के मौसम के कारण अभियान को स्थगित करना पड़ा.

1835 में, लद्दाख के राजा ने शांति की पेशकश की और जनरल ज़ोरावर सिंह ने उसे राजा गुलाब सिंह का एक सामंत बना लिया. इसके बाद, उन्होंने लद्दाख के राजा द्वारा की गई विद्रोह की कोशिश को कुचलने के लिए 1835 में फिर से एक अभियानों की शुरुआत की. जनरल ज़ोरावर सिंह ने लद्दाख के राजा को पदच्युत कर दिया और लद्दाख में डोगरा साम्राज्य की स्थिति मजबूत की.

तिब्बत में ज़ोरावर सिंह की सैन्य विजय

जनरल ज़ोरावर सिंह की सैन्य शक्ति का एक और उदाहरण तिब्बत में उनकी विजय है. 1841 में, उन्होंने तिब्बत के रूडोक पर आक्रमण किया और वहां स्थानीय शासक को बंदी बना लिया. इसके बाद, डोगरा सेना ने पश्चिमी तिब्बत के गारटोक जिले पर भी विजय प्राप्त की, क्योंकि वहां तिब्बती सैनिकों ने बिना किसी प्रतिरोध के उसे छोड़ दिया था.

जनरल ज़ोरावर सिंह की उपेक्षा और उनके योगदान का महत्व

अगर पंगोंग त्सो झील के किनारे पर किसी ऐतिहासिक योद्धा की प्रतिमा लगाई जानी थी, तो जनरल ज़ोरावर सिंह का नाम पहले आता है. उन्होंने लद्दाख, बाल्टिस्तान और तिब्बत में जो वीरता दिखाई, वह आज भी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर सम्मान की पात्र है. उनके संघर्ष और विजय ने भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.