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'पति को यौन संबंध बनाने से रोकना, बेबुनियाद धोखाधड़ी के आरोप लगाना क्रूरता,' बॉम्बे HC बोला- पति को मिल सकता है तलाक

बॉम्बे हाई कोर्ट की जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और डॉ. नीला गोखले की पीठ ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों के तहत तलाक देने के लिए ये पर्याप्त आधार हैं.

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Edited By: Mayank Tiwari
Bombay High Court
Courtesy: Social Media

 बॉम्बे हाई कोर्ट ने गुरुवार (17 जुलाई) को एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि पत्नी द्वारा पति का दोस्तों के सामने अपमान करना, शारीरिक संबंधों से इनकार करना और बेबुनियाद व्यभिचार के आरोप लगाना हिंदू विवाह अधिनियम के तहत क्रूरता माना जाता है और यह तलाक का आधार है. जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और डॉ. नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि इस तरह का व्यवहार पति के लिए मानसिक पीड़ा और अपमान का कारण बनता है, जो तलाक के लिए पर्याप्त आधार है.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, यह मामला एक महिला द्वारा दायर अपील से संबंधित था, जिसमें उसने पुणे परिवारिक न्यायालय के नवंबर 2019 के फैसले को चुनौती दी थी. इस फैसले में उसके पति की तलाक की अर्जी को मंजूरी दी गई थी. दंपति की शादी दिसंबर 2013 में हुई थी, लेकिन 12 महीनों के भीतर पर्सनल मतभेदों के कारण वे अलग हो गए.

पुणे फैमिली कोर्ट का निर्णय और अपील

जुलाई 2015 में, महिला ने अपने पति और उनके परिवार के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की, जिसमें उत्पीड़न, अपमान और उसका स्त्रीधन रखने का आरोप लगाया गया. उसने दावा किया कि उसे घर छोड़ने के लिए कहा गया. हालांकि, बाद में महिला ने पुणे परिवारिक न्यायालय में वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए याचिका दायर की, जिसमें उसने कहा कि वह शादी को खत्म नहीं करना चाहती. दूसरी ओर, पति ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग की.

पति के आरोप और तलाक का आधार

इधर, पति ने उत्पीड़न के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि पत्नी ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार किया, दोस्तों के सामने उसका अपमान किया, व्यभिचार के झूठे आरोप लगाए, उसकी विकलांग बहन को प्रताड़ित किया जिससे उसकी सेहत बिगड़ी, और उसके कार्यालय कर्मचारियों के साथ भी गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार किया. पति ने कहा कि इस व्यवहार ने उसे मानसिक पीड़ा दी. नवंबर 2019 में, परिवारिक न्यायालय ने महिला की वैवाहिक अधिकारों की याचिका खारिज कर दी और पति की याचिका के आधार पर तलाक मंजूर कर लिया. इस फैसले से असंतुष्ट होकर महिला ने 2021 में बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दायर की और 10,000 रुपये मासिक भरण-पोषण की मांग की.

हाईकोर्ट का फैसला

हाईकोर्ट ने दंपति के बीच सुलह के लिए कई मध्यस्थता सत्र आयोजित किए, लेकिन कोई समझौता नहीं हो सका. खंडपीठ ने निष्कर्ष निकाला कि सुलह की कोई गुंजाइश नहीं है. कोर्ट ने पाया कि महिला के दावे साक्ष्यों से पुष्ट नहीं हुए. कोर्ट ने कहा, "शारीरिक संबंधों से इनकार करना और व्यभिचार के आरोप लगाना भी पत्नी की ओर से क्रूरता है." साथ ही, पति के कर्मचारियों और विकलांग बहन के प्रति उदासीन व्यवहार को भी क्रूरता माना गया. कोर्ट ने परिवारिक न्यायालय के फैसले में कोई खामी नहीं पाई और महिला की भरण-पोषण की अपील को खारिज कर दिया.