'आप एक छात्रा का जीवन बर्बाद करना चाहते हैं? बॉम्बे HC ने छात्रा की गिरफ्तारी पर महाराष्ट्र सरकार को लगाई फटकार

पुणे की सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग की द्वितीय वर्ष की सूचना प्रौद्योगिकी छात्रा ने बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दायर की. जिसमें उसने मांग की है कि उसका निष्कासन रद्द किया जाए और उसे परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाए.

Imran Khan claims
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बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार (27 मई) को महाराष्ट्र सरकार को पुणे की 19 वर्षीय छात्रा की सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तारी पर कड़ी फटकार लगाई. इस दौरान कोर्ट ने इस कार्रवाई को ‘अतिवादी’ करार देते हुए सरकार के रवैये को अनुचित ठहराया. जस्टिस गौरी गोडसे और सोमशेखर सुंदरसन की अवकाश पीठ ने छात्रा के वकील को तत्काल जमानत याचिका दायर करने का निर्देश दिया और उसी दिन इसे मंजूर करने का आश्वासन दिया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, बॉम्बे हाईकोर्ट ने मंगलवार को उसके खिलाफ की गई कार्रवाई के लिए महाराष्ट्र सरकार और सिंहगढ़ इंजीनियरिंग अकादमी की खिंचाई की. दरअसल, पुणे के सिंहगढ़ एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग ने सूचना प्रौद्योगिकी की द्वितीय वर्ष की छात्रा को 9 मई को निष्कासित कर दिया था, जब उसके खिलाफ पुणे के कोंढवा पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी. उसे उसी दिन गिरफ्तार कर लिया गया था और वह फिलहाल यरवदा जेल में बंद है.

सोशल मीडिया पोस्ट पर मचा था विवाद

पुणे की सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय से संबद्ध सिन्हगड एकेडमी ऑफ इंजीनियरिंग में सूचना प्रौद्योगिकी की द्वितीय वर्ष की छात्रा को इस महीने की शुरुआत में भारत-पाक तनाव से जुड़ी एक सोशल मीडिया पोस्ट के लिए गिरफ्तार किया गया. छात्रा ने ‘रिफॉर्मिस्तान’ नामक इंस्टाग्राम अकाउंट से एक पोस्ट रीपोस्ट की थी, जिसमें भारत सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध भड़काने का आरोप लगाया गया था. धमकियों के बाद उसने दो घंटे में पोस्ट हटा दी और माफी मांगी. फिर भी, कोंढवा पुलिस ने FIR दर्ज कर उसे गिरफ्तार कर लिया. वह वर्तमान में यरवदा जेल में न्यायिक हिरासत में है. कॉलेज ने भी उसे बदनामी का हवाला देकर निष्कासित कर दिया था.

कोर्ट का सख्त रुख

इस मामले की सुनवाई के दौरान बॉम्बे हाई कोर्ट ने सरकार और कॉलेज के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक छात्रा ने अपनी राय व्यक्त की, गलती महसूस कर माफी मांगी, लेकिन उसे सुधार का मौका देने के बजाय अपराधी बना दिया गया. क्या सरकार चाहती है कि छात्र अपनी राय व्यक्त करना बंद कर दें?” कोर्ट ने कॉलेज के निष्कासन को भी गलत ठहराया, यह कहते हुए कि शैक्षणिक संस्थानों का उद्देश्य छात्रों को सुधारना है, न कि सजा देना.

गलतियां स्वाभाविक, सुधार का मौका जरूरी

कोर्ट ने कहा, “छात्रा की उम्र ऐसी है जहां गलतियां स्वाभाविक हैं. उसे पर्याप्त सजा मिल चुकी है.” कोर्ट ने तत्काल जमानत याचिका दायर करने और छात्रा को रिहा करने का आदेश दिया ताकि वह 24 मई से शुरू होने वाली सेमेस्टर परीक्षाओं में शामिल हो सके. छात्रा ने अपनी याचिका में कॉलेज के निष्कासन को ‘मनमाना और गैरकानूनी’ बताया, इसे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करार दिया.

कॉलेज को पुनर्बहाली का निर्देश

छात्रा ने निष्कासन रद्द करने, कॉलेज में पुनर्बहाली और परीक्षा में शामिल होने की अनुमति मांगी. कॉलेज ने दावा किया कि छात्रा ने संस्थान की छवि को नुकसान पहुंचाया और उसकी ‘राष्ट्र-विरोधी’ भावनाएं कैंपस के लिए खतरा हैं. कोर्ट ने इन दावों को खारिज करते हुए कहा कि एक माफी मांग चुकी छात्रा की पोस्ट से राष्ट्रीय हित को नुकसान नहीं होगा. यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश के सवाल उठाता है.

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