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Kannada Literature: इंटरनेशनल बुकर जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बनीं बानू मुश्ताक, भारत के लिए बड़ी उपलब्धि; पढ़ें 5 खास बातें

Banu Mushtaq: बानू मुश्ताक की 'हार्ट लैंप' कर्नाटक की मुस्लिम महिलाओं के दैनिक जीवन को बारीकी से प्रस्तुत करने वाला 12 लघु कथाओं का एक अनूठा संग्रह है, जो उनकी संघर्षों और खुशियों को जीवंतता से उजागर करता है.

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Edited By: Ritu Sharma
Banu Mushtaq
Courtesy: social media

Banu Mushtaq: भारतीय लेखिका बानू मुश्ताक और उनकी अनुवादक दीपा भस्थी को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से नवाज़ा गया है. उनकी चर्चित कृति 'हार्ट लैंप' ने यह सम्मान हासिल कर इतिहास रच दिया. यह किताब महिलाओं के जीवन, पितृसत्ता, जातिगत अन्याय और सत्ता के दमनकारी स्वरूप को बेबाकी से सामने लाती है.

1. कन्नड़ भाषा से पहला इंटरनेशनल बुकर सम्मान

कर्नाटक की रहने वाली 77 वर्षीय बानू मुश्ताक इस पुरस्कार को जीतने वाली पहली कन्नड़ लेखिका बन गई हैं. अपनी जीत पर उन्होंने कहा, 'यह एक ही आसमान को रोशन करने वाले हजारों जुगनू जैसा लगता है. जैसे, संक्षिप्त, शानदार और पूरी तरह से सामूहिक.' इससे पहले 2022 में गीतांजलि श्री की रेत समाधि को यह सम्मान मिला था.

2. महिलाओं के अधिकारों की मुखर वकालत

लेखिका के साथ-साथ बानू मुश्ताक एक सामाजिक कार्यकर्ता और कानूनविद भी हैं. उन्होंने हमेशा महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों की पैरवी की है. वे कहती हैं, ''धर्म, समाज और राजनीति महिलाओं से बिना सवाल किए आज्ञाकारी बनने की अपेक्षा रखते हैं और इसी प्रक्रिया में उन पर जुल्म करते हैं.'' उन्होंने अपने निजी जीवन में भी सामाजिक बंधनों को तोड़ते हुए अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह किया.

3. कम उम्र से शुरू हुआ लेखन का सफर

बानू ने अपनी पहली लघु कहानी मिडिल स्कूल में लिखी थी. लेकिन उन्हें असली पहचान 26 की उम्र में मिली जब उनकी कहानी प्रसिद्ध कन्नड़ पत्रिका 'प्रजामाता' में प्रकाशित हुई. वे एक मुस्लिम परिवार में पैदा हुईं और उनके पिता ने उनके विचारों और विद्रोही स्वभाव को हमेशा समर्थन दिया.

4. प्रगतिशील आंदोलनों की प्रेरणा

उनका लेखन कर्नाटक के प्रगतिशील साहित्यिक आंदोलनों से प्रेरित है. वे 'बंदया' साहित्य आंदोलन का हिस्सा रहीं, जिसने जातिवाद और वर्गीय भेदभाव को ललकारा. उनका साहित्य सामाजिक सच्चाइयों से गहराई से जुड़ा है.

5. साहित्यिक कृतियां और सम्मान

इसके अलावा, बानू मुश्ताक छह लघु कहानी संग्रह, एक उपन्यास, एक निबंध संग्रह और एक कविता संग्रह की लेखिका हैं. उन्हें कर्नाटक साहित्य अकादमी और दाना चिंतामणि अत्तिमाबे पुरस्कार जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से नवाज़ा गया है. उनकी प्रारंभिक कहानियों का संकलन हसीना मट्टू इथारा कथेगलु (2013) और हेन्नू हदीना स्वयंवर (2023) भी खासा चर्चित रहा.