जाकिर हुसैन के पैदा होने पर पिता ने कान में क्यों सुनाई तबले की ताल, वजह जानकर आप ही हो जाएंगे हैरान-Video

Zakir Hussain: भारत के जाने माने तबला उस्ताद जाकिर हुसैन का 15 दिसंबर को सैन फ्रांसिस्को में 73 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके जीवन और संगीत के बारे में कई दिलचस्प बातें सामने आईं, जिनमें से एक है उनका गहरा रिश्ते बनाना और अपने यंत्र से दोस्ती करना.

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Babli Rautela

Zakir Hussain: भारत के जाने माने तबला उस्ताद जाकिर हुसैन का 15 दिसंबर को सैन फ्रांसिस्को में 73 साल की उम्र में निधन हो गया. अपने जीवन में उन्होंने संगीत की दुनिया को कई अनमोल धरोहर दी और कला के लिए अपनी अनूठी समझ से न केवल भारतीय शास्त्रीय संगीत, बल्कि जैज संगीत को भी अपनाया. उनके जीवन और संगीत के बारे में कई दिलचस्प बातें सामने आईं, जिनमें से एक है उनका गहरा रिश्ते बनाना और अपने यंत्र से दोस्ती करना.

पैदा होती ही सुनाई तबले की लय

जाकिर हुसैन की संगीत यात्रा बहुत ही अनोखी रही. अपने जन्म के समय, जब दूसरे बच्चों के कानों में पारंपरिक प्रार्थनाए गाई जाती थीं, तो उस्ताद अल्ला रक्खा ने जाकिर के कानों में तबला की लय गाकर उन्हें संगीत से जोड़ा. यह शुरुआत उनके जीवन में संगीत के लिए गहरे रिश्ते और संगीतमय यात्रा की नींव बनी.

जाकिर ने एक बातचीत के दौरान कहा था, 'एक वाद्ययंत्र की अपनी आत्मा होती है. आपको इसके साथ दोस्ती बनानी चाहिए और एक बार यह रिश्ता बन जाने के बाद, यह वाद्य यंत्र आपका एक हिस्सा बन जाता है.' 

कैसा था जाकिर के घर का माहौल

जाकिर हुसैन का कहना था कि उनके पिता ने कभी भी सख्त नियम नहीं बनाए. उनका पालन-पोषण ऐसे वातावरण में हुआ, जिसमें उन्हें अपनी इच्छाओं को व्यक्त करने की पूरी स्वतंत्रता थी. जाकिर ने यह भी कहा कि अगर वह क्रिकेट खेलना चाहते, तो भी उन्हें किसी ने रोका नहीं होता. उनके पिता ने उन्हें तबला बजाने के लिए अपनी शर्तों पर अनुमति दी, और यही वजह थी कि जाकिर ने कला में अपने कौशल को इतनी निखरी हुई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.

जाकिर ने कला में आस्था की जरूरत पर भी जोर दिया. उन्होंने कहा, 'कला में सफल होने के लिए, आपको आस्था की छलांग लगानी चाहिए और उस भावना पर भरोसा करना चाहिए जो यह प्रदान करती है.'

जैज संगीत के लिए जाकिर हुसैन का झुकाव

जाकिर हुसैन का जैज संगीत के लिए भी गहरा झुकाव था. उन्होंने जैज और भारतीय शास्त्रीय संगीत की समानताएं साझा की. उनका कहना था, 'जैज और भारतीय शास्त्रीय दोनों ही सुधार और रचनात्मकता में निहित हैं.' उनके पिता ने उन्हें माइल्स डेविस जैसे दिग्गज जैज कलाकारों के रिकॉर्ड सुनवाए, जो बाद में उनके जीवन का अहम हिस्सा बने.

जाकिर हुसैन ने माइल्स डेविस के साथ अपने पहले जैम सेशन को याद करते हुए कहा, 'मैं उन्हें प्रभावित करने की इतनी कोशिश कर रहा था कि मैंने बहुत ज्यादा बजाया. वह मेरे पास आए और कहा, 'बहुत ज्यादा नोट्स!' तब मैंने सीखा कि कम ही ज्यादा है. भारतीय शास्त्रीय संगीत के साथ भी ऐसा ही है - अपने जीवन के सार को सिर्फ एक वाक्यांश में व्यक्त करना.'