Delhi University: आखिर क्यों दिल्ली विश्वविद्यालय के सिलेबस से हटाए जा रहे चीन और पाकिस्तान से संबंधित पाठ, यहां पढ़ें पूरी डिटेल्स

डीयू की शैक्षणिक मामलों की स्थायी समिति (एससीओएम) ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राजनीति विज्ञान विभाग को निर्देश दिया कि वह पाकिस्तान और चीन से संबंधित कई प्रस्तावित स्नातकोत्तर शोधपत्रों को पाठ्यक्रम से हटा दे.

Imran Khan claims
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Delhi University: दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) की शैक्षणिक मामलों की स्थायी समिति (एससीओएम) ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए राजनीति विज्ञान विभाग को निर्देश दिया कि वह पाकिस्तान और चीन से संबंधित कई प्रस्तावित स्नातकोत्तर शोधपत्रों को पाठ्यक्रम से हटा दे. समिति के कम से कम दो सदस्यों ने इसकी पुष्टि की. यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत तैयार किए गए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम के मसौदे के संदर्भ में लिया गया है.

प्रस्तावित शोधपत्रों में चार विषय-विशिष्ट ऐच्छिक (डीएसई) शामिल थे: पाकिस्तान और विश्व (डीएसई 29), समकालीन विश्व में चीन की भूमिका (डीएसई 31), पाकिस्तान में राज्य और समाज (डीएसई 35), और इस्लाम और अंतर्राष्ट्रीय संबंध (डीएसई 33). इसके अलावा, धार्मिक राष्ट्रवाद और राजनीतिक हिंसा (डीएसई 52) की समीक्षा 1 जुलाई को होने वाली अगली एससीओएम बैठक में होगी. समिति के एक सदस्य ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, "इन पेपरों को पूरी तरह से हटाने को कहा गया और विभाग से पाठ्यक्रम को नए सिरे से तैयार करने को कहा गया."

भारत-केंद्रित पाठ्यक्रम पर जोर

समिति की बैठक में रजिस्ट्रार ने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान से संबंधित विवादास्पद विषयों को हटाया जाएगा. समिति की सदस्य मोनामी सिन्हा ने कहा, "पाठ्यक्रम से तथ्यों को हटाने का मतलब है कि छात्र वर्तमान दुनिया के राजनीतिक माहौल को समझने का अवसर खो देंगे, जो बदले में हानिकारक है. विभाग से लगातार भारत-केंद्रित विषयों को शामिल करने के लिए कहा गया." डीयू के शैक्षणिक मामलों के डीन रत्नबली के. ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, "हमें पाकिस्तान का महिमामंडन नहीं करना चाहिए. अगर हम पाकिस्तान को पाठ्यक्रम में लाना चाहते हैं, जो कि निश्चित रूप से आवश्यक है, तो भारत को केंद्र बिंदु होना चाहिए." उन्होंने यह भी पूछा, "केवल चीन ही क्यों, अन्य प्रमुख या पड़ोसी देश क्यों नहीं?"

समाजशास्त्र पाठ्यक्रम पर भी सवाल

समाजशास्त्र विभाग के पाठ्यक्रम की भी समीक्षा की गई. सोशियोलॉजी ऑफ किंशिप पाठ्यक्रम में कैथ वेस्टन की पुस्तक फैमिलीज वी चूज: लेस्बियन, गे, किंशिप को शामिल करने पर आपत्ति जताई गई. सिन्हा ने बताया कि समिति ने तर्क दिया कि भारत में समलैंगिक विवाह वैध नहीं है और "संयुक्त परिवारों को पहले पढ़ाया जाना चाहिए." रत्नबली ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा, "छात्रों को पहले भारत में परिवार की अवधारणा को समझना चाहिए." 

इसी तरह, धर्म के समाजशास्त्र पाठ्यक्रम में “पैगंबर” और “चर्च” जैसे शब्दों पर आपत्ति जताई गई. सिन्हा ने बताया कि जब विभाग ने इन्हें मानक शैक्षणिक अवधारणाएँ बताया, तो समिति ने पाठ्यक्रम को “पुनः संशोधित” करने को कहा. रत्नबली ने सुझाव दिया, "हमने भाषा को ज़्यादा समावेशी बनाने के लिए 'चर्च' की जगह 'धार्मिक संरचना' रखने का सुझाव दिया. अगर आप पैगंबर को शामिल करते हैं, तो ऋषि को क्यों नहीं?"

भूगोल पाठ्यक्रम में संतुलन की मांग

भूगोल विभाग के स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में दक्षिण एशिया में लिंग और विकास का भूगोल नामक पाठ्यक्रम में पितृसत्ता का उल्लेख होने पर आपत्ति जताई गई. समिति ने मातृसत्ता को शामिल करने की मांग की ताकि विषय में संतुलन बना रहे.

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