ट्रंप के टैरिफ बम के आगे नहीं झुकीं भारतीय कंपनियां! रूस से तेल खरीदने का बनाया 'मेगाप्लान' लेकिन यहां फंस रहा पेंच
अमेरिका के दबाव और टैरिफ के बावजूद भारत की सरकारी तेल कंपनियां फिर से रूसी कच्चे तेल की बड़ी खरीदारी शुरू करने की तैयारी कर रही हैं. हालांकि सीमित कार्गो उपलब्धता और रूस का झुकाव चीनी बाजार की ओर होने से फिलहाल इसमें देरी हो रही है.
भारत और रूस के ऊर्जा रिश्तों पर एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय राजनीति का असर साफ दिखाई दे रहा है. अमेरिका की कड़ी आपत्तियों और दबावपूर्ण टैरिफ के बावजूद भारत ने संकेत दिया है कि वह रूसी कच्चे तेल की खरीद जारी रखेगा.
सरकारी तेल कंपनियों ने छूट पर मिलने वाले रूसी तेल की पूरी खरीद बहाल करने की योजना बनाई है, लेकिन मौजूदा हालात में कार्गो की कमी और रूस के चीन को प्राथमिकता देने से ये योजनाएं तुरंत पूरी नहीं हो पा रही हैं.
अमेरिका का दबाव और भारत की प्रतिक्रिया
डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन भारत पर रूसी तेल की खरीद बंद करने के लिए दबाव बना रहा है. वाशिंगटन और यूरोप अतिरिक्त प्रतिबंध और सेकेंडरी टैरिफ लगाने की तैयारी कर रहे हैं, ताकि रूस पर आर्थिक बोझ बढ़े और वह शांति वार्ता की ओर बढ़े. लेकिन भारत ने इस रुख को सख्ती से खारिज कर दिया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और पेट्रोलियम मंत्री हरदीप पुरी पहले ही साफ कर चुके हैं कि भारत अपनी ऊर्जा ज़रूरतों के हिसाब से फैसले करेगा और किसी बाहरी दबाव में नहीं आएगा.
कार्गो की कमी और चीन की प्राथमिकता
शिप-ट्रैकिंग डेटा के अनुसार मार्च में जहां भारत रोजाना 1.97 मिलियन बैरल रूसी तेल खरीद रहा था, वहीं अगस्त के अंत तक यह घटकर 1.3 मिलियन बैरल रह गया. इसकी मुख्य वजह यह है कि रूस ने चीन को बड़े पैमाने पर आपूर्ति बढ़ा दी है. अक्टूबर के लिए भी भारत को अपेक्षाकृत कम ऑफर मिले हैं. ऐसे में भारतीय रिफाइनर छूट का पूरा लाभ उठाना चाहते हैं, लेकिन आपूर्ति सीमित होने से उनकी रणनीति प्रभावित हो रही है.
तेल बाजार की बदलती तस्वीर
OPEC+ देशों ने हाल ही में सप्लाई पाबंदियों में ढील देने का फैसला किया है, जिससे मध्य-पूर्वी निर्यातकों और रूस को ज्यादा लचीलापन मिल गया है. इसने वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा और बढ़ा दी है. भारतीय ऑयल कॉर्पोरेशन के फाइनेंस डायरेक्टर अनुज जैन ने सिंगापुर में कहा कि 'हमने कभी रूसी कच्चे तेल की खरीद बंद नहीं की.' उनके मुताबिक, फिलहाल दुबई बेंचमार्क की तुलना में रूस के तेल पर 2 से 3 डॉलर प्रति बैरल की छूट मिल रही है, जो आर्थिक रूप से भारत के लिए अभी भी फायदेमंद है.
भविष्य की रणनीति
एनर्जी कंसल्टेंसी FGE के चेयरमैन फेरेडुन फेशाराकी ने अनुमान जताया है कि अगले महीने भारत के रूसी आयात में 2.5 लाख बैरल प्रतिदिन की कमी आ सकती है. यह संकेत है कि रूस से आयात का चरम दौर गुजर चुका है. हालांकि, भारत सरकार का साफ कहना है कि वह अपनी ऊर्जा ज़रूरतों और आर्थिक लाभ को देखते हुए ही आयात का स्तर तय करेगी. बदलते भू-राजनीतिक समीकरणों और बाज़ार की चुनौतियों के बीच भारत की कोशिश यही है कि उसे सस्ती ऊर्जा मिलती रहे और उसका विकास प्रभावित न हो.
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