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भगवान श्री कृष्ण का देवभूमि में द्वारिका बनाने का सपना क्यों रहा अधूरा?

Lord Krishna-Mathura: हमारे देश में ऐसे कई मंदिर हैं जिनसे सालों से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. ऐसा ही श्रीकृष्ण को समर्पित उनकी द्वारका भी अनोखी हैं. वैसे तो द्वारकाधीश का जन्म मथुरा में हुआ था लेकिन फिर भी द्वारका को उनकी नगरी के नाम से जाता हैं. ऐसे में अब हर किसी के मन में सवाल उठता है की आखिर क्यों द्वारकाधीश अपने नगरी मथुरा को छोड़ द्वारका चले गए. हालांकि मान्यता यह भी है कि द्वारकाधीश अपनी नगरी पहले द्वाराहाट में बनाना चाहते थे लेकिन किसी वजह से नहीं बना पाए.

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Lord Krishna-Mathura: हमारे देश में ऐसे कई मंदिर हैं जिनसे सालों से करोड़ों लोगों की आस्था जुड़ी हुई है. गुजरात के द्वारकाधीश मंदिर भी उन्हीं प्राचीन मंदिरों में से एक है. श्रीकृष्ण को समर्पित द्वारकाधीश मंदिर हजारों साल पुराना है. यह मंदिर अपनी शिल्पकारी के लिए जाना जाता है. मान्यता है कि 5000 साल पहले मथुरा को छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी को बसाया था और यही जगह श्रीकृष्ण का निवास स्थान हुआ करती थी. लेकिन मान्यता तो यह भी है कि द्वारकाधीश इससे पहले अपनी नगरी उत्तराखंड के द्वाराहाट में बसाना चाहते थे लेकिन किसी वजह से नहीं बसा पाए. आज इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे की वह कौन सी वजह से जिसकी वजह से श्रीकृष्ण को द्वाराहाट छोड़कर द्वारका में अपनी नगरी बसानी पड़ी. 

क्यों श्रीकृष्ण ने छोड़ मथुरा ?

भगवान श्रीकृष्ण का बचपन मथुरा शहर में गुजरा था लेकिन कंस के वध के बाद कृष्ण ने मथुरा छोड़ द्वारका में अपनी नगरी बसारी थी. कहा जाता है जब कंस का वध किया तब कंस का रिश्तेदार जरासंध था जो कि बहुत ज्यादा ताकतवर था. कंस की मौत के बाद जरासंध ने बदला लेने के लिए लगातार मथुरा पर आक्रमण करना शुरू कर दिया. हालांकि श्रीकृष्ण ने बार-बार उसे परास्त किया लेकिन वह आक्रमण करता ही रहा था.

जरासंध ने मथुरा पर किया 17 बार आक्रमण

बता दें की कंस की मौत का बदला लेने के लिए जरासंध ने लगातार 17 बार मथुरा पर आक्रमण किया. हर बार जरासंध की हार हुई लेकिन वह हर बार अपनी शक्ति संचय कर दोबारा मथुरा पर आक्रमण करने पहुंच जाता था. बार-बार आक्रमण की वजह से मथुरा वासियों का बेहद नुकसान होने लगा. मथुरा वासियों का नुक्सान होता देख कृष्ण ने कहा कंस का वध मैंने किया था और कंस के वध का उत्तरदाई मैं हूं लेकिन जब यह बार-बार आक्रमण करता है तो मृत्यु मेरे सैनिकों की और प्रजा की होती है. जिसकी वजह से मथुरा राज्य विकसित नहीं हो पा रहा है. 

इसलिए श्रीकृष्ण ने मथुरा को छोड़ने का फैसला किया. और सुदूर हिमालय की इस उत उपत्यका में द्वारका बनाने की योजना बनाई. इसे द्वाराहाट को उस समय की उत्तर द्वारिका भी कहा जाता है. परंतु द्वाराहाट में पानी की कमी होने की वजह से कृष्ण यहां द्वारिका न बसाकर समुद्र तट पर बसाने निकल पड़े. 360 मंदिरों और 365 नौलों से सजी इस नगरी को देवताओं के उत्तर द्वारिका बनाने की मान्यता आज भी यहां की जनमानस में रची बसी है.

 मान्यता है कि पहले द्वाराहाट में रामगंगा और कोसी को मिलना था. जिस काम की जिम्मेदारी गगास नदी ने छानागांव के सेमल के पेड़ को दिया था. लेकिन जब रामगंगा द्वाराहाट की ओर मोड़ने के मार्ग गनाई के पास पहुंची तो उस समय रामगंगा को संदेश देने वाला सेमल पेड़ सो गया. और जब उस पेड़ कि नींद खुली तो रामगंगा तलला गेवाड़ जा चुकी थी. इस वजह से न तो रामगंगा और कोसी का संगम हुआ और न ही बमनपुरी के नाम से यह द्वाराहाट नगरी द्वारिका बन सकी. 

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