10 सितंबर 1887 को अल्मोड़ा में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत, महाराष्ट्रीयन थे. उनके पिता की सरकारी नौकरी के कारण परिवार का स्थानांतरण होता रहता था.
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बचपन की होशियारी
बचपन से ही मेधावी पंत ने स्कूल में 30 गज कपड़े को काटने का सवाल 29 दिन में हल कर सबको चकित कर दिया, जो उनकी तीव्र बुद्धि का प्रतीक था.
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हिंदी को राजभाषा का दर्जा
पंत ने हिंदी को संविधान में राजभाषा का दर्जा दिलाने और जमींदारी प्रथा खत्म करने में अहम भूमिका निभाई. वे 1937 और 1946-54 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे.
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स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
स्वतंत्रता सेनानी के रूप में पंत ने कई आंदोलनों में हिस्सा लिया और 1940-41 में अल्मोड़ा जेल में बंद रहे, जहां उन्होंने अंग्रेजों का डटकर मुकाबला किया.
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लाठीचार्ज में चोट
1927 में साइमन कमीशन के खिलाफ लखनऊ प्रदर्शन में पंत को लाठीचार्ज में चोटें आईं, जिससे उनकी गर्दन झुक गई, मगर उनका जोश कभी कम नहीं हुआ.
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सच्चाई के वकील
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढ़ाई के बाद पंत ने काशीपुर में वकालत शुरू की. वे केवल सच्चे केस लड़ते थे और काकोरी कांड में बिस्मिल व खान का केस लड़ा.
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कुली बेगार के खिलाफ बिगुल
1914 में पंत ने कुली बेगार प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई और इसे खत्म करवाया, जिससे आम लोगों को अंग्रेजों का सामान ढोने की बाध्यता से मुक्ति मिली.
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टाई ब्रेकर की भूमिका
द्वितीय विश्व युद्ध में पंत ने गांधी और बोस के गुटों के बीच मध्यस्थता की, दोनों के विचारों को संतुलित कर स्वतंत्रता संग्राम को दिशा दी.