डर, चिंता, घबराहट... आपको भी हो रही है War Anxiety? ऐसे करें दूर
Princy Sharma
2025/05/08 09:45:22 IST
‘ऑपरेशन सिंदूर’
आजकल हर न्यूज चैनल और सोशल मीडिया पर सिर्फ एक ही बात हो रही है भारत का ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और युद्ध की तैयारी. टीवी पर बम धमाके, मौत की खबरें, और पाकिस्तान की धमकियों की चर्चा लगातार चल रही है.
Credit: Pinterest एंजायटी
इन खबरों का असर आम लोगों की मानसिक सेहत पर गहरा पड़ रहा है, खासकर उन लोगों पर जो पहले से एंजायटी या पैनिक अटैक से जूझ रहे हैं. चलिए जानते हैं क्या है ‘वार एंजायटी’
Credit: Pinterest क्या है वार एंजायटी?
जब किसी देश में युद्ध या टकराव की खबरें लगातार चलती हैं, तो लोग डर, बेचैनी और खतरे का एहसास करने लगते हैं. इसी मानसिक स्थिति को वार 'एंजायटी' कहा जाता है. बार-बार युद्ध की खबरें और धमाके की आवाजें उनकी चिंता को ट्रिगर कर देती हैं
Credit: Pinterest मीडिया की लत
रिसर्च में पाया गया है कि एंजायटी से परेशान लोग खुद ही ज्यादा न्यूज और सोशल मीडिया पर स्क्रॉल करते हैं. इससे उनका तनाव और ज्यादा बढ़ता है और यह एक दुष्चक्र बन जाता है जितना देखो, उतना डरो.
Credit: Pinterest बच्चों पर डरावना असर
बच्चे इस माहौल को समझ नहीं पाते. युद्ध की खबरें, बम धमाकों की आवाजें उन्हें अंदर तक डरा देती हैं. इसके कारण उन्हें बुरे सपने, बिस्तर गीला करना और समाज से दूरी बनाना जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
Credit: Pinterestस्ट्रेस हार्मोन बढ़ता है
लगातार नकारात्मक खबरें देखने से मस्तिष्क में स्ट्रेस हार्मोन (जैसे कॉर्टिसोल) बढ़ता है, जिससे नींद न आना, चिड़चिड़ापन और पैनिक अटैक हो सकते हैं.
Credit: Pinterest PTSD का खतरा
युद्ध जैसे माहौल में लंबे समय तक रहने से PTSD (पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर) जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं. खासकर बच्चों और किशोरों में इसका असर ज्यादा होता है.
Credit: Pinterest रील्स से दूरी बनाएं
इंस्टाग्राम या यूट्यूब पर वायरल हो रही युद्ध की रील्स, धमाके और फेक वीडियो दिमाग में डर और बेचैनी भर सकते हैं. इन्हें देखने से बचें.
Credit: Pinterest एक्सपर्ट्स की सलाह
एक्सपर्ट्स का कहना है कि केवल विश्वसनीय न्यूज सोर्स देखें, दिनभर में समाचार देखने की लिमिट तय करें, योग और ध्यान करें और बच्चों से बात करके उन्हें भरोसा दिलाएं कि वे सुरक्षित हैं.
Credit: Pinterest डॉक्टर से मिलें
अगर फिर भी दिल की धड़कन तेज हो रही हो, सांस लेने में तकलीफ हो, या डर लगातार बना रहे, तो देर न करें. किसी मनोचिकित्सक या काउंसलर से सलाह लें. इलाज संभव है और जरूरी भी.
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