'जाति की स्थिति काफी नहीं', इलाहाबाद हाई कोर्ट ने प्रॉपर्टी केस में SC/ST एक्ट के इस्तेमाल को खारिज किया
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो दशक से भी पहले हुए जमीन आवंटन में कथित अनियमितताओं और संबंधित रेवेन्यू कार्यवाही से जुड़े एक आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो दशक से भी पहले हुए जमीन आवंटन में कथित अनियमितताओं और संबंधित रेवेन्यू कार्यवाही से जुड़े एक आपराधिक मामले को रद्द कर दिया है, जिसमें SC/ST एक्ट के तहत आरोप भी शामिल थे.
कोर्ट ने कहा कि सिर्फ SC ज़मीन या शिकायतकर्ता की जाति की स्थिति का ज़िक्र करना, स्पेशल कानून के प्रावधानों को लागू करने के लिए काफी नहीं है.
सिंगल-जज बेंच ने की सुनवाई
एक आपराधिक अपील पर सुनवाई करते हुए, जस्टिस शेखर कुमार यादव की सिंगल-जज बेंच ने कहा कि सिर्फ अनुसूचित जाति की जमीन या शिकायतकर्ता की जाति की स्थिति का जिक्र करना, स्पेशल कानून के प्रावधानों को लागू करने के लिए काफी नहीं है. जस्टिस यादव ने कहा कि यह मामला "मुख्य रूप से सिविल और रेवेन्यू प्रकृति का था" और अभियोजन पक्ष की कार्रवाई कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग थी.
आदेश में जांच में गंभीर अनियमितताओं की ओर भी इशारा किया गया, जिसमें मृत व्यक्तियों को अभियोजन पक्ष के गवाहों के रूप में शामिल करना शामिल है और कहा गया कि ऐसी कमियां दिमाग का इस्तेमाल न करने को दर्शाती हैं और जांच को कानूनी रूप से अस्थिर बनाती हैं.
कार्यवाही को रद्द कर दिया
अपने आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 20 मार्च, 2023 के संज्ञान और समन आदेश, चार्जशीट और गौतम बुद्ध नगर के दादरी पुलिस स्टेशन में 2022 में SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 3(1)(f) के तहत, कई IPC अपराधों के साथ दर्ज FIR से उत्पन्न सभी कार्यवाही को रद्द कर दिया.
कोर्ट ने कहा कि न तो FIR और न ही चार्जशीट में यह बताया गया था कि कथित कृत्य "इस आधार पर किए गए थे कि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का है", जो SC/ST एक्ट लागू करने के लिए एक अनिवार्य कानूनी शर्त है.
सह-आरोपियों को पहले ही राहत दी जा चुकी
इसी तरह के मामलों में दूसरे सह-आरोपियों को पहले ही राहत दी जा चुकी है और अपीलकर्ता के खिलाफ कोई अलग परिस्थिति नहीं दिखाई गई. जस्टिस यादव ने निष्कर्ष निकाला कि आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा, "इस अदालत की राय में, इस मामले में SC/ST एक्ट लगाना पूरी तरह से गलत है और कार्यवाही जारी रखने से न्याय नहीं मिलेगा," और पूरे आपराधिक मामले को रद्द कर दिया.