'ग्लेशियर के पिघलने से लोगों की आजीविका पर पड़ेगा असर', ताजिकिस्तान में आयोजित सम्मेलन में बोले पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह
पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने ताजिकिस्तान के दुशांबे में ग्लेशियर संरक्षण पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत की चिंताओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया. सिंह ने बताया कि यह प्रक्रिया जलवायु परिवर्तन के कारण तेज हो रही है, जिसका असर जल संसाधनों, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर पड़ रहा है.
International Conference on Glaciers Preservation 2025: पर्यावरण राज्य मंत्री कीर्ति वर्धन सिंह ने ताजिकिस्तान के दुशांबे में ग्लेशियर संरक्षण पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भारत की चिंताओं को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया. उन्होंने कहा, "ग्लेशियरों का पिघलना न केवल एक चेतावनी है, बल्कि यह एक तात्कालिक वास्तविकता है, जिसका जल सुरक्षा, जैव विविधता और अरबों लोगों की आजीविका पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा.'
हिमालय जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना चिंता का विषय है. सिंह ने बताया कि यह प्रक्रिया जलवायु परिवर्तन के कारण तेज हो रही है, जिसका असर जल संसाधनों, जैव विविधता और स्थानीय समुदायों की आजीविका पर पड़ रहा है. हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र से गहराई से जुड़े देश के रूप में, भारत इस संकट को गंभीरता से ले रहा है. पर्यावरण मंत्रालय के बयान के मुताबिक, भारत ने हिमनद निगरानी और जलवायु अनुकूलन के लिए कई रणनीतिक पहल शुरू की हैं.
भारत की रणनीतिक पहल
भारत ने हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए राष्ट्रीय मिशन (NMSHE) लागू किया है, जो राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC) का हिस्सा है. इसके अतिरिक्त, क्रायोस्फीयर और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की गई है, जो हिमालयी ग्लेशियरों और ग्लेशियल झीलों के अनुसंधान को बढ़ावा देता है. सिंह ने बताया, "भारत ग्लेशियर के द्रव्यमान, विस्तार और गतिशीलता में परिवर्तनों की व्यवस्थित निगरानी के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के नेतृत्व में उन्नत रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) प्रौद्योगिकियों का लाभ उठा रहा है."
वैज्ञानिक अनुसंधान और सहयोग
राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR), राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान (NIH), वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान और जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान जैसे प्रमुख संस्थान इस दिशा में समन्वित अनुसंधान कर रहे हैं. ये प्रयास ग्लेशियरों की वैज्ञानिक समझ को बढ़ाने और जल संसाधनों के सतत प्रबंधन के लिए डेटा-संचालित नीतियां बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.
आपदा प्रबंधन और क्षेत्रीय सहयोग
सिंह ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा समन्वित ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) जोखिम मानचित्रण और बेहतर पूर्व चेतावनी प्रणालियों पर जोर दिया. क्षेत्रीय सहयोग को मजबूत करने, डेटा साझा करने और पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र की चुनौतियों का सामना करने के लिए भारत सक्रिय रूप से काम कर रहा है.
वैश्विक जिम्मेदारी और भारत की प्रतिबद्धता
सिंह ने अंतरराष्ट्रीय जलवायु कार्रवाई में समानता और साझा लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों (CBDR-RC) के सिद्धांत पर भारत की प्रतिबद्धता दोहराई. उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया का वैश्विक उत्सर्जन में योगदान न्यूनतम है, फिर भी यह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है.