नई दिल्ली: भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट एक ऐसे मामले पर फैसला लेने जा रही है जिसने पूरे देश में नैतिक और कानूनी बहस को फिर से तेज कर दिया है. हरीश राणा पिछले 13 साल से कोमा जैसी हालत में हैं और अब कोर्ट यह तय करेगा कि उन्हें पैसिव इच्छामृत्यु की अनुमति दी जाए या नहीं. इस फैसले का असर न केवल एक परिवार बल्कि भविष्य के ऐसे सभी मामलों पर पड़ सकता है
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने सुनवाई के दौरान संकेत दिए कि अब इस मामले में निर्णायक फैसला लेने का समय आ गया है. बेंच ने कहा कि यह रिपोर्ट बेहद दुखद है और अदालत के सामने बड़ी चुनौती है. कोर्ट का मानना है कि किसी व्यक्ति को अनिश्चित काल तक इस स्थिति में रखना भी एक गंभीर सवाल है
कोर्ट ने वकीलों को AIIMS नई दिल्ली के सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट का अध्ययन करने का निर्देश दिया है. इस रिपोर्ट में हरीश राणा का पूरा मेडिकल इतिहास, न्यूरोलॉजिकल जांच, डायग्नोस्टिक निष्कर्ष और वर्तमान स्थिति का विस्तृत आकलन शामिल है. रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि मरीज के ठीक होने की कोई संभावना नजर नहीं आती
कोर्ट ने साफ किया है कि अंतिम फैसला लेने से पहले वह हरीश राणा के माता पिता और भाई बहनों से सीधे बात करेगा. इसके लिए परिवार को 13 जनवरी को चैंबर में चर्चा के लिए बुलाया गया है. भारत में पैसिव इच्छामृत्यु से जुड़े नियमों के तहत कोर्ट का परिवार से परामर्श करना अनिवार्य है ताकि उनकी इच्छा और मानसिक स्थिति को समझा जा सके
मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार पैसिव इच्छामृत्यु के लिए प्राइमरी और सेकेंडरी दोनों मेडिकल बोर्ड की सहमति जरूरी होती है. इसके अलावा यह भी देखा जाता है कि मरीज की हालत स्थायी है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि अंतिम निर्णय मेडिकल आकलन और परिवार की सहमति के आधार पर ही लिया जाएगा. जीवन रक्षक इलाज बंद करने का फैसला बेहद संवेदनशील माना जाता है
हरीश राणा साल 2013 में चंडीगढ़ में इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे. इसी दौरान वह चौथी मंजिल की बालकनी से गिर गए और उनके सिर में गंभीर चोटें आईं. इसके बाद से वह कोमा जैसी हालत में हैं. बीते 13 सालों में उन्हें PGI चंडीगढ़, AIIMS दिल्ली, राम मनोहर लोहिया अस्पताल, लोक नायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल और फोर्टिस अस्पताल में इलाज मिला लेकिन हालत में कोई सुधार नहीं हुआ