लद गए NOTA के दिन! 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम दबाया गया नोटा का बटन, जानें क्या है वजह

बिहार ने 2.07% के साथ सबसे अधिक NOTA वोट दर्ज किए, इसके बाद दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव में 2.06% वोट थे. वहीं, गुजरात में यह प्रतिशत 1.58% था.

Imran Khan claims

2024 के लोकसभा चुनाव में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) पर NOTA (None Of The Above) बटन का दबाया जाना अब तक का सबसे कम दर्ज किया गया है. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारतीय मतदाता अब NOTA का विकल्प पहले की तुलना में कम इस्तेमाल कर रहे हैं. चुनाव आयोग द्वारा साझा किए गए आंकड़ों के अनुसार, इस बार NOTA का प्रतिशत गिरकर 0.99% हो गया है, जो कि 2014 के चुनाव में 1.08% था.

NOTA विकल्प का इतिहास और प्रभाव
NOTA का विकल्प भारतीय चुनावों में 2013 में एक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) में जोड़ा गया था. इससे पहले, जो मतदाता किसी उम्मीदवार को नहीं चुनना चाहते थे, उन्हें फॉर्म 49-O भरने का विकल्प मिलता था, लेकिन यह प्रक्रिया गोपनीयता का उल्लंघन करती थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में NOTA को एक वैध विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया, ताकि मतदाता बिना अपनी गोपनीयता खोए किसी उम्मीदवार को न चुनने का विकल्प चुन सकें.

2024 में NOTA का कम दबाया जाना
2024 के लोकसभा चुनावों में NOTA विकल्प का प्रतिशत पिछले चुनावों के मुकाबले गिरा है. 2014 में यह प्रतिशत 1.08% था, जो 2024 में घटकर केवल 0.99% रह गया. हालांकि यह गिरावट मामूली सी लग सकती है, लेकिन यह आंकड़ा इस बात की ओर इशारा करता है कि मतदाता अब अधिक सक्रिय रूप से चुनावों में हिस्सा ले रहे हैं और NOTA को अपनी असहमति या विरोध के रूप में कम उपयोग कर रहे हैं.

राज्यों के अनुसार NOTA के वोट का वितरण
NOTA वोट का वितरण विभिन्न राज्यों में अलग-अलग रहा है, जो यह दर्शाता है कि प्रत्येक राज्य में राजनीतिक और सामाजिक स्थितियां भिन्न हो सकती हैं. बिहार ने 2.07% के साथ सबसे अधिक NOTA वोट दर्ज किए, इसके बाद दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव में 2.06% वोट थे. वहीं, गुजरात में यह प्रतिशत 1.58% था.

इसके विपरीत, नगालैंड में NOTA का प्रतिशत केवल 0.21% था, जो यह दर्शाता है कि राज्य में मतदाता अधिकतर अपने पसंदीदा उम्मीदवारों के लिए मतदान कर रहे थे और NOTA का प्रयोग बहुत कम हो रहा था.

चुनावी प्रभाव और निष्कर्ष
हालांकि NOTA के वोटों का कुल प्रतिशत कम है, फिर भी यह महत्वपूर्ण हो सकता है, खासकर उन सीटों पर जहां विजेता और हारे हुए उम्मीदवार के बीच मार्जिन बहुत कम होता है. NOTA के माध्यम से कई मतदाता अपने असंतोष या दलील व्यक्त करते हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी और राजनीतिक समझ बढ़ रही है.

विभिन्न राज्यों में NOTA के वोटों का भिन्न-भिन्न प्रतिशत यह दर्शाता है कि भारत में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, क्षेत्रीय दलों की प्रासंगिकता, मतदाता शिक्षा और समग्र चुनावी परिदृश्य के आधार पर मतदाता अपनी राय और विरोध व्यक्त करते हैं. 2024 के चुनावों में NOTA के कम प्रतिशत का यह मतलब हो सकता है कि लोग अधिक सक्रिय रूप से उम्मीदवारों का चुनाव कर रहे हैं और विरोध या असंतोष व्यक्त करने के लिए NOTA का कम उपयोग कर रहे हैं. NOTA विकल्प ने भारतीय चुनावों में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है, और इसके कम या ज्यादा इस्तेमाल को समझने से यह पता चलता है कि भारतीय लोकतंत्र में मतदाताओं का रुझान किस प्रकार बदल रहा है.

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