Greenhouse gas emissions: भारत सरकार ने औद्योगिक क्षेत्रों में ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने के लिए एक बड़ा कदम उठाया है. पर्यावरण मंत्रालय ने 8 अक्टूबर 2025 को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य नियम, 2025 (Greenhouse Gas Emission Intensity Target Rules, 2025) अधिसूचित किए हैं.
यह पहली बार है जब भारत ने कार्बन-गहन उद्योगों के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्य तय किए हैं. इन नियमों के तहत एल्युमीनियम, सीमेंट, लुगदी एवं कागज तथा क्लोर-क्षार जैसे क्षेत्रों में कार्यरत 282 औद्योगिक इकाइयों को आधार वर्ष 2023-24 की तुलना में प्रति इकाई उत्पादन में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना होगा.
2025-27 होगा पहला अनुपालन चक्र
इन नियमों का अनुपालन काल 2025-26 से 2026-27 तक रहेगा. प्रत्येक उद्योग इकाई को अपने उत्पाद की प्रति टन पर उत्सर्जन तीव्रता घटानी होगी. यह कदम 2022 में पारित ऊर्जा संरक्षण (संशोधन) अधिनियम का क्रियान्वयन भी है, जिसने घरेलू कार्बन बाजार (Carbon Market) की स्थापना का कानूनी आधार प्रदान किया था. जिन उद्योगों का उत्सर्जन निर्धारित लक्ष्य से कम रहेगा, उन्हें कार्बन क्रेडिट प्रमाणपत्र (Carbon Credit Certificates) दिए जाएंगे.
वहीं जिन इकाइयों का उत्सर्जन निर्धारित सीमा से अधिक होगा, उन्हें उतने ही क्रेडिट बाजार से खरीदने होंगे या जुर्माना देना होगा. यह जुर्माना 'पर्यावरण मुआवजा' (Environmental Compensation) कहलाएगा, जिसकी राशि उस वर्ष के औसत कार्बन क्रेडिट मूल्य से दोगुनी होगी. इस मुआवजे की वसूली केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) द्वारा की जाएगी, और भुगतान 90 दिनों के भीतर करना अनिवार्य होगा.
प्रमुख कंपनियां और उनके लक्ष्य
पहले अनुपालन चक्र में शामिल प्रमुख कंपनियों में वेदांता, हिंदाल्को, नाल्को, बाल्को (एल्यूमीनियम), तथा अल्ट्राटेक, डालमिया, जेके सीमेंट, श्री सीमेंट, एसीसी जैसी सीमेंट कंपनियां शामिल हैं. क्षेत्रवार दो वर्षों के लिए उत्सर्जन कटौती लक्ष्य इस प्रकार हैं:
मानकों के अनुरूप उठाए कदम
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम भारत को अपने पेरिस समझौते (Paris Agreement) के तहत निर्धारित राष्ट्रीय योगदान (NDC) लक्ष्यों की ओर तेजी से ले जाएगा, जिसमें 2030 तक GDP उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी और 2070 तक नेट-जीरो लक्ष्य शामिल हैं. इसके अलावा यह नीति भारतीय निर्यातकों को यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मैकेनिज्म (CBAM) जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तैयार करेगी, जिससे भारतीय उद्योगों की वैश्विक प्रतिस्पर्धा भी बढ़ेगी.