क्या अदालतें मध्यस्थता से जुड़े फैसलों को संशोधित कर सकती हैं; न्यायालय में सुनवाई शुरू

उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने बृहस्पतिवार को एक अहम कानूनी मुद्दे पर सुनवाई शुरू की कि क्या अदालतें मध्यस्थता और सुलह से संबंधित वर्ष 1996 के कानून के प्रावधानों के तहत मध्यस्थता से जुड़े फैसलों को संशोधित कर सकती हैं?

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Anvi Shukla

हाल ही में, भारत में मेडिएशन से जुड़े फैसलों को लेकर एक महत्वपूर्ण कानूनी सवाल उठ खड़ा हुआ है कि क्या अदालतें मेडिएशन से जुड़े फैसलों को मॉडिफाइ या बदल सकती हैं. यह मामला अब न्यायालय में सुनवाई के लिए पेश किया गया है, और इससे जुड़ी कानूनी दलीलें और तर्क अदालत में प्रस्तुत हो रहे हैं. 

प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई, न्यायमूर्ति संजय कुमार, न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की एक संविधान पीठ वर्तमान में केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को सुन रही है

मेडिएशन और जुडिशरी का संबंध:

मेडिएशन, जो कि एक वैकल्पिक विवाद समाधान प्रक्रिया है, में पार्टियां अपने विवादों को अदालत की बजाय एक तटस्थ पक्ष की मदद से सुलझाती हैं. इस प्रक्रिया को भारतीय कानून में वैधता प्राप्त है और इसका उद्देश्य अदालतों पर दबाव कम करना और अधिक प्रभावी और तेज विवाद समाधान सुनिश्चित करना है. हालांकि, एक सवाल जो उठता है वह यह है कि अगर मेडिएशन से संबंधित फैसला किसी पार्टी के लिए असंतोषजनक हो, तो क्या न्यायालय उस फैसले को बदलने या संशोधित कर सकता है.

अदालतों द्वारा मेडिएशन फैसलों की समीक्षा:

न्यायालय में इस सवाल पर विचार किया जा रहा है कि क्या अदालतें मेडिएशन द्वारा लिए गए फैसलों में हस्तक्षेप कर सकती हैं. वर्तमान में, भारतीय कानून के तहत मेडिएशन फैसले की सीमित समीक्षा की अनुमति है. हालांकि, अदालतों को कुछ परिस्थितियों में ही मेडिएशन फैसलों को रद्द या संशोधित करने का अधिकार होता है, जैसे कि यदि वह फैसले कानून के खिलाफ हों या पक्षों के अधिकारों का उल्लंघन करते हों. 

समीक्षा की आवश्यकता और न्यायिक अधिकार:

इस मुद्दे पर सुनवाई के दौरान, कई कानूनी विशेषज्ञों ने यह तर्क प्रस्तुत किया कि मेडिएशन फैसलों की समीक्षा का अधिकार न्यायालयों को होना चाहिए, लेकिन यह अधिकार सीमित होना चाहिए, ताकि मेडिएशन की स्वतंत्रता को बनाए रखा जा सके. वे यह भी मानते हैं कि अगर कोई फैसला स्पष्ट रूप से गलत हो या किसी पार्टी के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो, तो अदालतों को उस फैसले को संशोधित करने का अधिकार होना चाहिए.

मेडिएशन और अदालतों की भूमिका के बीच का यह विवाद भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ हो सकता है. न्यायालय को इस पर निर्णय लेते समय यह संतुलन बनाना होगा कि मेडिएशन  की स्वतंत्रता और पार्टी के अधिकारों की रक्षा के बीच कैसे एक न्यायपूर्ण समाधान निकाला जाए. इस मुद्दे पर अदालत का फैसला आने वाले समय में भारतीय मेडिएशन प्रक्रिया की दिशा को निर्धारित करेगा.